रहीम के 2 दोहे और उसका भाव इस प्रकार है :
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।
रहीम जी इस दोहे में समझा रहे है कि, किसी भी बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु को नहीं फेंकना चाहिए , क्योंकि जिस काम के लिए एक सुई काम आती है, दूसरी तरफ़ देखा जाए तो बड़ी तलवार उस काम में कुछ नहीं कर सकती है |
सरल शब्दों में रहीम जी के समझाने का मतलब है , कि हमें किसी को भी छोटा नहीं समझना चाहिए , न किसी किसी की निंदा करनी चाहिए | छोटी वस्तु की जीवन में बहुत अहमियत होती है | हमें सबका सम्मान करना चाहिए |
ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
रहीम जी इस दोहे में समझाना चाहते कि, हमें दूसरों के साथ मन से अहंकार निकाल कर बात करनी चाहिए, अपने मन का आपा नहीं खोना चाहिए | हमें दूसरों से ऐसे बात करनी चाहिए, ताकि सामने वाला सुनकर दूसरों को ख़ुशी मिले , सामने वाले के चेहरे में ख़ुशी आए | प्रेम से बात करने से सामने वाला भी खुश होगा और हम स्वयं भी खुश होगे |
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत । ते ‘रहीम’ पसु से अधिक, रीझेहु कछू न देत ॥