लघुकथा
पिछली गर्मियों में मैं अपने परिवार के साथ नैनीताल घूमने गया था। मुझे वह हादसा याद है जब हम सब नैनीताल के जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में घूमने गए थे। हम एक सुबह जिम कॉर्बेट के बीच में से खुली जीप में सवर होकर शेरों के झुंड को देख रहे थे। वह पर और भी बहुत सारे लोग जंगल सफारी के लिए आए हुए थे।
हमारी पीछे वाली गाड़ी में कुछ लड़के बैठे हुए थे और कुछ शरारती किस्म के लोग थे क्योंकि वह वहाँ घूम रहे शेरों को छोटे-छोटे पत्थरों से छेड़ रहे थे। अचानक एक शेर ने उस जीप पर हमला कर दिया और क्योंकि जीप ऊपर से खुली थी एक शेर ने उस जीप में सवार एक लड़के पर जानलेवा हमला कर दिया और उसके बाजू पर अपने तीखे दांतों से आक्रमण कर दिया।
डर के मारे वह लड़का जीप से नीचे गिर गया और फिर वहाँ पर मौजूद सभी शेरों ने उस लड़के को चारों तरफ से घेर लिया। हम सब बहुत डर गए थे और वह लड़का भी डर के मारे चिल्ला रहा था लेकिन हम में से किसी की हिम्मत नहीं हुई उस शेरों के झुंड में जाने की।
इस सूचना के
मिलते ही वहाँ पर तैनात वन रक्षक वहाँ आ गए और उन्होंने उस लड़के को मौत मुंह से निकाल लिया। लेकिन वो लड़का बहुत डरा हुआ था और उस झटके से अभी उभर ही नहीं पा रहा था। वन रक्षकों ने तुरंत चिकित्सा टीम को फोन किया और उस लड़के की मरहम पट्टी कार्रवाई गयी।
जब सब सामान्य हो गया तो वन रक्षकों ने उस लड़के को समझाया कि आप उन बेज़ुबान जानवरों को पत्थर से छेड़ रहे थे इसीलिए उन्होंने तुम पर आक्रमण किया अन्यथा वह किसी को कुछ नहीं कहते। वह लड़का भी अब समझ गया था कि गलती उसकी ही थी और इसके लिए उसने वन रक्षकों और सभी उपस्थित लोगों से माफी मांगी और प्रण लिया कि आगे से कभी भी ऐसी बेवकूफी नहीं करूंगा।
यह बात भी सत्य है कि अगर हमें कोई बेवजह तकलीफ पहुंचाए तो हम भी उसे बर्दाश्त नहीं कर सकते तो अगर जानवर ऐसा ही रवैया अपनाए तो इसमे हैरानी की क्या बात है। इस हादसे ने हम सब को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि मनुष्य ने तो तकरीबन सारी धरती पर अपना कब्जा जमा रखा है लेकिन वन्य जीवों को भी अपने जीने का स्थान चाहिए और अगर हम वन्य जीवों को उनके निर्दिष्ट स्थान पर भी आराम से जीने नहीं देंगे तो मनुष्य पर आक्रमण करने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं बचेगा।
हम सब को यह समझना चाहिए कि अगर मनुष्य को एक सामान्य जीवन जीने का अधिकार है तो वन्य जीवों को भी अपना जीवन जीने का पूर्ण अधिकार है और यह जीने का अधिकार उन्हें मनुष्य ने नहीं, स्वयं भगवान ने दिया है और इसलिए मनुष्य का कोई अधिकार नहीं कि उनसे उनके जीने का अधिकार छीन ले।
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