‘कार्नेलिया का गीत’ कविता में व्यक्त प्रकृति चित्रों का वर्णन…
‘कार्नेलिया के गीत’ कविता में कवि जयशंकर प्रसाद ने भारत देश की प्रकृति का अद्भुत चित्रण किया है। कवि के अनुसार भारत देश बेहद सुंदर और प्यारा देश है। यहाँ चारों तरफ प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है।
सुबह सुबह जब सूर्य उदय होता है तो सूर्य की सुनहरी किरणें चारों तरफ अपनी सुनहरी धूप बिखेरती हैं, तो वह दृश्य बड़ा ही मनोहारी दिखाई देता है। सूरज के प्रकाश से सरोवर में जब कमल खिलने लगते हैं और वृक्ष की टहनियों पर सूरज की किरणें सुनहरे रूप में गिरती है तो वह दृश्य मन को मोह लेता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि चारों तरफ प्रकाश कमल पत्तों पर तथा वृक्ष की चोटियों से खेल रहा हो। सूरज की लालिमा भोर के समय चारों तरफ फैल कर अपनी मंगलकारी होने का बोध कराती है।
मलय पर्वत की मंद मंद वायु का सहारा पाकर नन्हे नन्हे पक्षी जब अपने छोटे-छोटे पंखों से आकाश में उड़ान भरते हैं तो उस समय सुंदर इंद्रधनुष जैसा जादू उत्पन्न करते हैं।
सुबह-सुबह उदित होता सूर्य आकाश में ऐसा दिखाई देता है, ऐसे सरोवर में कोई सोने का घड़ा डूब रहा हो। सूरज की किरणें रात की नींद से अलसायें लोगों के मन में स्फूर्ति भर देती हैं।
संदर्भ पाठ :
जयशंकर प्रसाद – देवसेना का गीत/कार्नेलिया का गीत (कक्षा – 12, पाठ – 1, अंतरा)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
‘जहाँ पहुँचकर अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।