श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन विपिन की तरुछाया में,
पथिक उनींदी श्रुति मे किसने,
ये विहाग की तान उठाई।
इन पंक्तियों में निहित काव्य सौंदर्य इस प्रकार है :
काव्य सौंदर्य :
देवसेना की स्मृतियां जग जाती है। देवसेना अपने बीते हुए दिनों की स्मृतियों में डूबी हुई है। जब वह स्कंद गुप्त के प्रेम को पाने के लिए अथक प्रयास करती थी, लेकिन उसे स्कंद गुप्त का प्रेम नहीं मिला और वो असफल रही। अब उसे अचानक उसे उस प्रेम के स्वर सुनाई पड़ रहे हैं। इन स्वरों से वह चौंक उठती है।
पंक्तियों में ‘विहाग राग’ का भी उल्लेख किया गया है। यह राग आधी रात में गाया जाता है। देवसेना को आधी रात में उसी विहाग राग के सुर सुनाई पड़ रहे हैं। उसे अपनी बीते हुए प्रेम की याद हो उठती है।
यहाँ पर कवि ने स्वप्न को श्रम रूप में कह कर व्यंजना व्यक्त करने का प्रयत्न किया है। कवि ने स्वप्न को मानव के रूप में दर्शाया है।
गहन विपिन और तरु छाया जो कि सामासिक शब्द है, इन के माध्यम से कवि ने काव्य को अलग सौंदर्य देने का प्रयास किया है।
इन सभी पंक्तियों के माध्यम से देवसेना के मन की वेदना प्रकट होती है।
संदर्भ पाठ :
जयशंकर प्रसाद – देवसेना का गीत/कार्नोलिया का गीत (कक्षा – 12, पाठ – 1, अंतरा)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई। पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।