इन पंक्तियों में निहित व्यंजना इस प्रकार है:
‘दुर्बल पद बल’ के माध्यम से देवसेना की शक्ति की सीमा का बोध कराया गया है। देवसेना अपनी शक्ति की सीमा जानती है। उसे अच्छी तरह से पता है कि वह कमजोर यानि दुर्बल है और इसके बावजूद वह अपने भाग्य की कठिनाइयों से लड़ रही है। देवसेना अपनी शक्ति की सीमा को भलीभांति जानती है।
‘होड़ लगाई’ शब्द से में निहित व्यंजना देवसेना की लगन को प्रदर्शित करती है। देवसेना को अच्छी तरह से पता है कि वो जिससे प्रेम करती है, उससे उस प्रेम में उसे हार ही मिलनी है। सब कुछ जानते हुए भी वह अपने मन की लगन को नहीं छोड़ती और पूरी लगन से ना केवल स्कंदगुप्त से प्रेम करती है बल्कि हर तरह की विपरीत परिस्थिति का भी सामना करती है और हार नहीं मानती। इस तरह वह सब कुछ जाने हुए भी उसे हार ही मिलनी है, वह अपने कमजोर भाग्य से से मुकाबला करती है।
संदर्भ पाठ :
जयशंकर प्रसाद – देवसेना का गीत/कार्नोलिया का गीत (कक्षा – 12, पाठ – 1, अंतरा)
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :
मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई। पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
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