निम्न पंक्तियों में निहित अलंकारों का नाम बताइए- मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के। 1. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गए न उबरै, मोती, मानस, चून। 3. ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो। 4. कढत साथ ही म्यान ते,असि रिपु तन ते प्राण।


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निम्न पंक्तियों में निहित अलंकारों का नाम इस प्रकार होगा :

1. मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के।
अलंकार : मानवीकरण अलंकार
कारण : क्योंकि  इसमें मेघ यानि बादलों को मानव के रूप में क्रिया करते हुए दिखाया गया है।
मानवीकरण की परिभाषा के अनुसार जब प्रकृति के तत्वों को मानवीय रूप में क्रिया करते हुए दर्शाया जाए तो वहां पर ‘मानवीकरण अलंकार’ प्रकट होता है।

2. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गए न उबरै, मोती, मानस, चून।
अलंकार : यमक अलंकार
इन पंक्तियों में यमक अलंकार इसलिए है क्योंकि यहां पर एक ही शब्द ‘पानी’ के अलग-अलग अर्थ प्रकट हो रहे हैं, इसीलिए यहां पर ‘यमक अलंकार’ है।
यमक अलंकार की परिभाषा के अनुसार जब किसी का भी पंक्ति में एक ही शब्द प्रयुक्त किया जाए लेकिन एक ही शब्द अलग अलग अर्थ के संदर्भ में प्रयुक्त हो तो वहां पर ‘यमक अलंकार’ होता है।
इन पंक्तियों में पानी शब्द के तीन अर्थ निकल रहे हैं , मूर्ति ,मनुष्य रमन और आता इसलिए यहां पर यमक अलंकार होगा |

3. ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो।
अलंकार : उत्प्रेक्षा अलंकार
कारण :  क्योंकि इन पंक्तियों में उपमान का अभाव है, और उपमेय को ही उपमान मान लिया गया है।
उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा के अनुसार जहाँ पर उपमान के ना होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए अर्थात उपमेय को ही उपमान बनाकर प्रस्तुत कर दिया जाए वहां पर उस ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है।
इन पंक्तियों में उपमेय को उपमान की तरह प्रस्तुत कर दिया गया है। इसलिए यहां पर ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ होगा

4. कढत साथ ही म्यान ते,असि रिपु तन ते प्राण।
अलंकार : अतिश्योक्ति अलंकार

कारण : क्योंकि इन पंक्तियों में कवि में अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन यानि बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया है।
अतिशयोक्ति अलंकार किसी काव्य में वहाँ पर प्रकट होता है जहाँ किसी काव्य पंक्ति के माध्यम से कवि किसी बातों को बढ़ा चढ़ाकर वर्णन करता है अर्थात वीरता, साहस या करुणा या प्रेम आदि सभी बातों का बढा-चढ़ा कर अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन किया जाए तो वहां पर ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ प्रकट होता है।
इन पंक्तियों में कवि ने अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन किया है, इसलिए यहाँ पर ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ है।

 

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सुनि सुनि ऊधव की अकह कहानी कान कोऊ थहरानी कोऊ थानहि थिरानी हैं। कहैं ‘रतनाकर’ रिसानी, बररानी कोऊ कोऊ बिलखानी, बिकलानी, बिथकानी हैं। कोऊ सेद-सानी, कोऊ भरि दृग-पानी रहीं कोऊ घूमि-घूमि परीं भूमि मुरझानी हैं। कोऊ स्याम-स्याम कह बहकि बिललानी कोऊ कोमल करेजौ थामि सहमि सुखानी हैं। संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।

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