‘बड़े भाई साहब’ पाठ में कनकौए की तुलना बेकार के कार्य से की गई है। कनकौए यानी पतंगबाजी करना लेखक यानी छोटे भाई का शौक था।
बड़े भाई साहब लेखक को खेलने कूदने से टोकते रहते थे, लेकिन इसी बीच छोटे भाई को कनकौए उड़ाने यानी पतंगबाजी करने का शौक लग गया।
अब छोटे भाई का अधिकतर समय पतंगबाजी करने में ही चला जाता था छोटा भाई बड़े भाई साहब से छुप-छुप कर कनकौए उड़ाता रहता था।
कनकौए को माँझा देना, कन्नी बांधना, पतंग टूर्नामेंट की तैयारी आदि करना सब कार्य वह चुपचाप करता रहता था और बड़े भाई साहब को पता नहीं चलता था।
एक दिन बाजार में जब कनकौआ लूटने के चक्कर में छोटा भाई दौड़ा जा रहा था तभी छोटे भाई का सामना बड़े भाई साहब से हो गया। तब बड़े भाई साहब को छोटे भाई के कनकौए के शौक का पता चल गया। तब उन्होंने छोटे भाई को खूब डांट लगाई और कहा कि तुम आठवीं जमात में पढ़ते हो और कनकौए के लिए दौड़ रहे हो। तुम्हें शर्म नहीं आती। तुम्हें अपनी आठवीं जमात का जरा भी लिहाज नहीं।
संदर्भ :
(‘बड़े भाई साहब’ पाठ, मुंशी प्रेमचंद, कक्षा – 10, पाठ -10)
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