बड़े भाई साहब पाठ के आधार पर कहे तो दादाजी द्वारा भेजा जाने वाला खर्चा बीस-बाइस दिन चलता था।
विस्तार से समझें
‘बड़े भाई साहब’ पाठ जोकि मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया है, उसमें बड़े भाई साहब छोटे भाई को डांटते हुए कहते हैं कि हम तुम यह नहीं जानते कि महीना वर्ष का खर्चा कैसे चलाया जाए। दादा हमें जो खर्चा भेजते हैं, वह हम बीस-बाइस दिन में खर्च कर डालते हैं और बाद में पैसे-पैसे को मोहताज हो जाते हैं। हमारा नाश्ता बंद हो जाता है, धोबी और नाई से मुंह चुराने लगते हैं। हम बीस-बाइस दिनों में जितना खर्चा कर देते हैं, उसके आधे में दादा अपना पूरा महीना आराम से निकाल लेते थे।
संदर्भ :
(‘बड़े भाई साहब’ पाठ, मुंशी प्रेमचंद, कक्षा – 10, पाठ -10)
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