स्वर्ण श्रृंखला का बंधन से क्या अर्थ है?


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स्वर्ण श्रंखला के बंधन से अर्थ यह है कि पक्षियों को सोने के पिंजरे में बंद कर दिया गया है। उन्हें सोने की जंजीरों से बांध दिया गया है। वह पक्षी जो स्वच्छंद आकाश में उड़ने के आदी रहे हैं, जिनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति आकाश में स्वच्छंद रूप से विचरण करने की है, उन्हें सोने के पिंजरे में बंद कर दिया गया है। उनके सामने मीठे-मीठे पकवान रख दिए गए हैं। लेकिन पक्षियों को ना तो वह सोने का पिंजरा अच्छा रहा है और ना ही वह मीठे मीठे पकवान अच्छे लग रहे हैं।
उन्हें आजाद रहकर आकाश में विचरण करना और जगह-जगह भटककर कड़वी नीम की बौरियों को खाना ज्यादा अच्छा लगता है, क्योंकि उसमें उनके मेहनत की मिठास छुपी होती है।
कवि ने ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ कविता के माध्यम से कवि शिवमंगल सुमन ने पिंजरे में बंद पक्षी यों की मनोदशा का वर्णन किया है।
कवि पक्षियों के माध्यम से यह बताना चाहता है कि पक्षियों को अपनी स्वतंत्रता पसंद है। उन्हें सोने के पिंजरो में उन्हें गुलामी पसंद नहीं। भले ही उन्हेंसोने के पिंजरे क्यों ना मिले और मीठे मीठे पकवान क्यों न मिले।
दासता के सोने के पिंजरों और मीठे पकवान की जगह उन्हें स्वतंत्रता अधिक पसंद है, भले ही उसमें उन्हें भटक पड़ता हो और कड़ी नीम की बौरियां खानी होती हों।

संदर्भ :
‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ कवि शिवमंगल सिह सुमन, स्वर्ण श्रंखला कक्षा – 7, पाठ – 1

 

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