दिल्ली में दिसंबर के महीने में बढ़ती प्रदूषण के क्या कारण है। इस विषय पर माताजी जी और पुत्री के बीच संवाद :
बेटी : (घर के अंदर आते हुए) माँ, देखो-देखो मेरी आँखों में बहुत जलन हो रही है।
माँ : क्या हुआ बेटी:
माँ : बाहर देखो इतने प्रदूषण के कारण कितना धुआँ-धुआँ सा छाया हुआ है। इससे मेरी आंखों में जलन होने लगती है और है और मुझे सांस लेने में भी तकलीफ होती है।
माँ : बेटी, दिसंबर के महीने में दिल्ली में प्रदूषण बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।
बेटी : माँ, ऐसा क्यों होता है? खाली दिसंबर में ही प्रदूषण इतना अधिक क्यों हो जाता है?
माँ : बेटी दिल्ली में प्रदूषण की हालत वैसे ही अच्छी नहीं है। उसके अलावा दिसंबर के महीने में आसपास के राज्यों के कि किसान अपनी खेती की ‘पराली’ जलाते हैं, जिससे उसका धुआँ दिल्ली में आकर प्रदूषण बढ़ा देता है।
बेटी : माँ ‘पराली’ क्या होता है।
माँ : बेटा, पराली फसल का बचा हुआ वह भाग होता है, जो फसल कटने के बाद अवशेष के रूप में बचा रह जाता है, जो किसानों के किसी काम का नहीं रहता। वह उसे जला देते हैं।
बेटी : माँ किसान पराली क्यों जलाते हैं, वह उसे किसी को दे क्यों नहीं देते, या बेच क्यों नहीं देते?
माँ : बेटा, किसान द्वारा पराली को ले जाने का खर्चा जितना होता है, उतना उन्हें दाम नहीं मिलता, इसलिए वह अपने खेतों में ही इस पराली को जला देते हैं।
बेटी : माँ, इसका कोई उपाय नहीं है क्या?
बेटा : नई-नई तकनीक आ रही है, जिसके पराली को सरकार अपने स्तर से कोशिश कर रही है कि पराली किसानों से एकत्रित कर उसे खाद में परिवर्तित कर देगी। धीरे-धीरे किसानों को जागरूक किया जा रहा है और उन्हें सरकार के उपायों से जुड़ने के लिए कहा जा रहा है।
बेटी : माँ, फिर तो ठीक है। दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति कुछ सही हो, नहीं तो बहुत तकलीफ हो जाएगी।
माँ : बेटा तुम ध्यान से जाया करो और बाहर निकलते समय मास्क पहन कर जाया करो। कोरोना के कारण हमें मास्क पहनने की आदत पड़ ही गयी है। इसलिए अब तुम गऱ से बाहर निकलते समय चश्मा पहनकर और मास्क पहनकर निकला करो ताकि तुम्हे प्रदूषण से परेशानी न हो।
बेटी : ठीक है माँ, मैं अब मास्क और चश्मा पहनकर ही घर से निकलूंगी।
माँ : बेटा, अब तुम हाथ-मुँह धो लो। मै खाना लगाती हूँ।
बेटी : हाँ, माँ।
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