‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में हालदार साहब का कौतुक बढ़ने का कारण ये था, क्योंकि उन्होंने पहले तो नेता जी की मूर्ति पर रोज अलग-अलग चश्मा लगा देखा और फिर जब उन्होंने पान वाले से अलग-अलग चश्मा लगे होने का कारण पूछा तो पान वाले ने कहा कि कैप्टन चश्मे वाला यह व्यक्ति यह चश्मा लगाता है।
तब हालदार साहब का कौतुक बढ़ा, उन्होंने सोचा कि कैप्टन चश्मे वाला नेताजी का कोई भूतपूर्व साथी है या आजाद हिंद फौज का कोई सिपाही है।
कैप्टन नाम से उन्होंने यही अंदाजा लगाया कि वो कोई भूतपूर्व सैनिक या स्वतंत्रता सेनानी है, जो नेता जी की मूर्ति के प्रति श्रद्धा और प्रेम के कारण उनकी मूर्ति पर चश्मा लगा देता है। लेकिन बाद में उन्हें पान वाले से यह पता चला कि वह व्यक्ति कोई पूर्व सैनिक नहीं बल्कि चश्मा बेचने वाला एक साधारण सा व्यक्ति है, तो हालदार साहब उस व्यक्ति की देशभक्ति की भावना से प्रभावित हुए बिना ना रह सके।
संदर्भ :
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ स्वतंत्र प्रकाश द्वारा लिखा गया पाठ है, जिसमें उन्होंने एक ऐसी छोटी से कस्बे का वर्णन किया है, जहाँ पर चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पत्थर की एक प्रतिमा वहाँ की नगर पालिका द्वारा लगवाई गई थी। लेकिन उस प्रतिमा पर पत्थर का चश्मा नहीं बना था, बल्कि उस प्रतिमा पर बाहर से चश्मा चढ़ा दिया जाता था जो कि प्लास्टिक के प्रेम का बना होता था। यह चश्मा कैप्टन नामक चश्मे बेचने वाला एक व्यक्ति लगाता था।
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नेताजी की प्रतिमा पर चश्मा ना होने की क्या क्या संभावनाएं हालदार साहब ने व्यक्त थी ?