बच्चों द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर सरकंडे का चश्मा लगाया गया। यह चश्मा तब लगाया गया, जब कैप्टन चश्मे वाला नाम का व्यक्ति मर गया जो कि नेताजी की प्रतिमा पर नियमित रूप से चश्मा लगाता था।
विस्तार से
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ जो कि स्वतंत्र प्रकाश द्वारा लिखा गया पाठ है। इस पाठ के अंत में बताया गया है कि जब कैप्टन चश्मे वाला व्यक्ति मर जाता है, तो उसके बाद नेता जी की मूर्ति थोड़े दिन तक बिना चश्मे के रहती है, लेकिन एक दिन जब हालदार साहब कस्बे से गुजरे तो उन्होने देखा कि नेताजी की प्रतिमा पर कस्बे के बच्चों ने सरकंडे का चश्मा लगा दिया था।संदर्भ :\
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ स्वतंत्र प्रकाश द्वारा लिखा गया पाठ है, जिसमें उन्होंने एक ऐसी छोटी से कस्बे का वर्णन किया है, जहाँ पर चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पत्थर की एक प्रतिमा वहाँ की नगर पालिका द्वारा लगवाई गई थी। लेकिन उस प्रतिमा पर पत्थर का चश्मा नहीं बना था, बल्कि उस प्रतिमा पर बाहर से चश्मा चढ़ा दिया जाता था जो कि प्लास्टिक के प्रेम का बना होता था। यह चश्मा कैप्टन चश्मे वाला नामक चश्मे बेचने वाला एक व्यक्ति लगाता था।
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