‘नेताजी का चश्मा’ चैप्टर में नगर पालिका द्वारा कस्बे में विभिन्न तरह के कार्य कराये जाते थे।
नगरपालिका कस्बे में जरूरत पड़ने पर किसी कच्ची सड़क को पक्की करवा देती थी, तो कभी लोगों की सुविधा के लिए पेशाबघर बनवा देती थी। नगर पालिका ने कबूतरों के लिए छतरी भी बनवा दी थी। नगर पालिका किसी विशिष्ट अवसर पर कस्बे में कवि सम्मेलन का भी आयोजन करवा देती थी, ताकि कस्बे के लोगों का मनोरंजन हो सके। नगर पालिका ने कस्बे में एक विशिष्ट कार्य भी करवाया था। उसने कस्बे के चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी थी।
इसी प्रतिमा पर आधारित ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ की कहानी है।
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ नेताजी की प्रतिमा और उस पर लगे चश्मे पर आधारित कहानी है। नेताजी का चश्मा पाठ स्वतंत्र प्रकाश द्वारा लिखा गया है, जिसमें उन्होंने एक छोटे से कस्बे का वर्णन किया है। इस कस्बे से हालदार साहब अक्सर अपने कार्य के जाते समय गुजरते थे। इस कस्बे के चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की संगमरमर की एक प्रतिमा लगी हुई थी। प्रतिमा तो पूरी तरह संगमरमर की थी, लेकिन लेकिन नेताजी के चेहरे पर लगा चश्मा पत्थर का नही था। इस पर एक वास्तविक फ्रेम का चश्मा लगा था, जो रोज बदल जाया करता था। इस चश्मे को कैप्टन चश्मे वाला नाम का एक चश्मा बेचने वाला व्यक्ति बदलता था।