मीराबाई भक्तिकाल की कवयित्री मानी जाती हैं। वह भक्ति काल के सगुण भक्ति की कवयित्री थी। मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण की आराधना के लिए प्रसिद्ध थीं।
भक्तिकाल में अनेक प्रमुख कवि रहे हैं, जो सगुण एवं निर्गुण विचारधारा के कवि थे।
भक्ति काल के दो अन्य प्रमुख कवियों में कबीर दास और तुलसीदास का नाम प्रमुख है।
विस्तार से
भक्ति काल चौदहवीं शताब्दी से अठारवीं शताब्दी के बीच का वो काल था जिसमें ईश्वर की भक्ति से भरी हुई अनेक काव्य रचनायें रची गयीं। लगभग 400 वर्ष के इस काल में अनेक प्रमुख कवि रहे, जिनमें मीराबाई, कबीरदास, तुलसीदास, सूरदास, नंद दास, कृष्णदास, गोविंद दास, श्री भट्ट, रसखान, चैतन्य महाप्रभु, रहीम दास आदि कवियों के नाम प्रमुख हैं। भक्ति काल के कवि ईश्वर की भक्ति के लिए जाने जाते थे।
भक्ति काल में दो काव्य धारायें प्रचलित थी।
— सगुण भक्ति एवं निर्गुण भक्ति
सगुण भक्ति की दो शाखाएं थी :
रामाश्रयी शाखा एवं कृष्णाश्रयी शाखा
निर्गुण भक्ति की दो शाखाएं थी :
ज्ञानाश्रयी शाखा एवं प्रेमाश्रयी शाखा
मीराबाई
मीराबाई भक्ति काल की एक प्रसिद्ध कवयित्री थीं, जो श्री कृष्ण के प्रति अपने अनन्य भक्ति के लिए जानी जाती थीं। मीराबाई ने कृष्ण भक्ति के अनेक स्फुट पदों की रचना की है। मीरबाई का जन्म राजस्थान के पाली जिले में कुड़की नामक गांव में 1498 में उनका जन्म हुआ था। बचपन से ही वे कृष्ण भक्ति के प्रति आकर्षित थीं. उनका विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हो गया लेकिन पति की मृत्यु के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन के कृष्णभक्ति के प्रति समर्पित कर दिया।
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