नेताजी का चश्मा कहानी कस्बे में कितने सिनेमाघर थे?

‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में कुल दो ओपन एअर सिनेमाघर थे।

 

विस्तार से :

‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में कुल दो ओपन एयर सिनेमा घर थे।

‘नेताजी का चश्मा’ पाठ लेखक ‘स्वयं प्रकाश’ द्वारा लिखा गया एक संस्मरण पाठ है, जिसमें उन्होंने एक छोटे से कस्बे में लगी नेताजी की पत्थर की मूर्ति तथा एक कैप्टन चश्मे वाले के प्रसंग का वर्णन किया है।

इस पाठ में उन्होंने कस्बे की जो स्थिति बताई है, उसके अनुसार कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। यहां पर बेहद कम संख्या में पक्के मकान थे। कस्बे में एक छोटा सा बाजार था। एक लड़कों का स्कूल था, तो एक लड़कियों का स्कूल था। एक सीमेंट का छोटा कारखाना था।

उसके अलावा कस्बे में दो ओपन एयर सिनेमा थे।

कस्बे में एक नगरपालिका भी थी। नगर पालिका कस्बे के विकास के लिए कुछ ना कुछ कार्य करती रहती थी। कभी सड़क पक्की करवा देती तो कभी पेशाब घर बनवा देती। कभी कबूतरों के लिए छतरी बनवा देती तो कभी कवि सम्मेलन करवा देती थी। इसी नगर पालिका ने कस्बे के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगवा दी थी। इस कहानी में उसी प्रतिमा के बारे में वर्णन किया गया है।

स्वतंत्र प्रकाश :

स्वतंत्र प्रकाश हिंदी के जाने-माने साहित्यिकार-कहानी लेखक रहे हैं, जिन्होंने मध्यमवर्गीय जीवन से संबंधित कहानियां लिखी है। उनके तेरह कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनके कहानी संग्रह में ‘आदमी जात का आदमी’, ‘सूरज कब निकलेगा’ के नाम प्रमुख है।

स्वतंत्र प्रकाश मूल से इंदौर (मध्य प्रदेश) के रहने वाले हैं। उनका जन्म 1947 में इंदौर में हुआ था।

‘नेताजी का चश्मा’ कहानी उनके द्वारा लिखी गई कहानी है, जिसमें उन्होंने एक छोटे से कस्बे में लगी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का वर्णन किया है, जिसपर पत्थर का चश्मा नही लगा था। एक कैप्टन चश्मे वाला नाम का व्यक्ति प्रतिमा पर अलग अलग चश्मे लगाता था।


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