संदर्भ लेख
शीत युद्ध – महाशक्तियों का टकराव
शीत युद्ध से तात्पर्य उस युद्ध से होता है, जोकि कूटनीतिक स्तर पर दो पक्षों के बीच लड़ा जाने वाला युद्ध होता है। इस युद्ध में किसी तरह के हथियार अथवा सैनिकों आदि का प्रयोग नहीं किया जाता। ना ही इस युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से दोनों पक्ष के सैनिक आपस में लड़ते हैं। ना ही इस युद्ध में कोई रक्तपात होता है। यह युद्ध कूटनीतिक स्तर पर, आर्थिक मोर्चे पर और सामाजिक मोर्चे पर लड़ा जाता है।। ऐसा ही शीत युद्ध विश्व की दो महा शक्तियों सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच 1945 से 1991 तक लड़ा गया था। शीत युद्ध पर एक नजर डालते हैं।
शीत युद्ध
जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया, तब द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उपजी राजनीतिक परिस्थितियों में संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। उस समय विश्व में दोनों देश महाशक्ति थे।
एक तरफ अमेरिका के नेतृत्व वाला गुट था। जिसमें अमेरिका और उसके सहयोगी देश शामिल थे जो कि पूँजीवाद का समर्थन करते थे। वहीं दूसरी तरफ सोवियत संघ के नेतृत्व वाला साम्यवादी गुट था, जो साम्यवाद का समर्थन करता था। इसमें पूर्वी यूरोप के वे सभी देश शामिल थे जो सोवियत संघ पर आश्रित थे।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उपजे परिणामों के कारण दोनों पक्षों में गहरे मतभेद उत्पन्न होने लगे थे और दोनों पक्ष अपना वर्चस्व स्थापित करने में लगे। सोवियत रूस नेतृत्व में साम्यवादी और अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीवादी गुट बन गए बन गए और दुनिया के अधिकतर देश इन गुटों में शामिल हो गएष यह शीत युद्ध का आरंभ था।
शीत युद्ध के कारण
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सोवियत रूस और अमेरिका दोनों एक ही पक्ष की तरफ से भी जर्मनी और अन्य धुरी राष्ट्रों के विरुद्ध मिलकर लड़े थे। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद अमेरिका और रूस दोनों में मतभेद उत्पन्न होने लगे।
रूस ने याल्दा समझौते का पालन करने से इंकार कर दिया। इसके अतिरिक्त अमेरिका और रूस के बीच अन्य कई वैचारिक मतभेद भी भी उत्पन्न होने लगे।
1922 में बसे सोवियत संघ ने अपनी शक्ति का विस्तार करना शुरू कर दिया था और वह एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर रहा था और महाशक्ति बनने की ओर कोशिश कर रहा था। अब सोवियत संघ वैश्विक मामलों में बिना किसी आवश्यकता के हस्तक्षेप करने लगा था, जिससे अमेरिका से उसका टकराव होने लगा।
दोनों पक्षों में हथियारों, परमाणु कार्यक्रमों और अंतरिक्ष कार्यक्रमों की होड़ लग गई। विश्व के अधिकतर देश किसी न किसी रूप में शामिल हो गए।
शीतयुद्ध में भारत की भूमिका
बहुत से देश देशों ने गुटनिरपेक्ष की नीति अपनाई और किसी भी पक्ष में शामिल नहीं हुए। भारत भी उन्हीं देशों में से प्रमुख देश था।
जिन देशों ने पूंजीवादी को अथवा साम्यवादी गुट में शामिल ना होने की रणनीति अपनाई, उन्हें गुटनिरपेक्ष देश कहा गया। भारत उन्हीं देशों में से एक था। शीत युद्ध के दौरान भारत ने तटस्थ नीति अपनाकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो किसी भी गुट को में शामिल नहीं हुआ। भारत की नीति सकारात्मक रही और उसने दोनों गुटों के बीच तनाव को कम करने के लिए हर तरह की सक्रिय भूमिका भी निभाई।
गुटनिरपेक्ष नीति अपनाना भारत के लिए लाभदायक रहा। गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण ही भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक हितकारी निर्णय लेने में सक्षम हो सका भारत में दोनों गुटों से समान दूरी बनाए रखें, इससे ना तो उसका किसी महाशक्ति से बहुत अधिक तनाव उत्पन्न हुआ और ना ही बहुत अधिक निकटता।
दोनों महाशक्तियां भारत के आना चाहती थीं और यदि एक महाशक्ति भारत पर दबाव बनाती थी तो दूसरी महाशक्ति उसकी मदद के लिए तत्पर रहती थी। इसी कारण कोई महाशक्ति भारत पर गुट में शामिल होने का दवाब नहीं बना पाई और भारत को दोनों से पर्याप्त लाभ प्राप्त हुआ।
शीत युद्ध की महत्वपूर्ण घटनाएं
- जब 1945 के बाद शीत युद्ध का आरंभ हो गया तब दोनों पक्षों के बीच तनाव बढ़ने पर सोवियत संघ ने 1948 में जर्मनी के बर्लिन शहर की घेराबंदी शुरू कर दी। उसने पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी के बीच बर्लिन में एक कांटेदार दीवार का भी निर्माण करना शुरू कर दिया।
- चूँकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद समय अमेरिका और रूस दोनों ने मिलकर जर्मनी को पराजित किया था इसलिए सोवियत संघ और अन्य देशों अमेरिका, फ्रांस तथा ब्रिटेन को जर्मनी के क्षेत्रों के भाग्य का निर्णय करने का अधिकार मिला था।
- याल्टा सम्मेलन में जर्मनी को रूस, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के प्रभाव वाले क्षेत्रों में विभाजित कर दिया गया था। जर्मनी का पूर्वी भाग सोवियत संघ को मिला जबकि पश्चिमी भाग संयुक्त राज्य, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस को मिला। इसी प्रकार की राजधानी बर्लिन को भी दो भागों में विभाजित कर दिया गया था। यह विभाजन पूँजीवादी गुट और साम्यवादी गुटों के बीच विवाद का कारण बना।
- शीत युद्ध के अन्य कारणों में मार्शल योजना, कॉमिनफार्म संधि, नाटो संधि बनाम वारसा संधि आदि प्रमुख कारण थे।
महाशक्तियों में प्रतिस्पर्था
सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में अंतरिक्ष में भी प्रतिस्पर्धा आरंभ हो गई और दोनों देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रमों अचानक बढ़ोतरी होने लगी। 1957 में सोवियत रूस ने उपग्रह स्पुतनिक-1 का प्रक्षेपण किया तो वही 1958 अमेरिका ने अपने एक्सप्लोरर नाम का उपग्रह प्रक्षेपित किया।
अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में अमेरिका को जीत मिली जब उसने 1969 में चंद्रमा पर पहला मानव ‘नील आर्मस्ट्रांग’ के रूप में उतारने में सफलता प्राप्त कर ली। अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा के अलावा दोनों महाशक्तियों में हत्यारों की भी होड़ लग गई और दोनों महाशक्ति हथियार संग्रह के केंद्र बन गए।
बड़े पैमाने पर परमाणु हथियारों का विकास होने लगा। यह संसार में परमाणु युग का आरंभ था।
शीत युद्ध का चरण बिंदु तब आया जब 1961 में अमेरिका और अफ्रीकी देश क्यूबा तनाव उत्पन्न हो गया। तब क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो ने सोवियत रूस से सैन्य मदद मांगी और फिर सोवियत रूस ने क्यूबा में अमेरिका के शहरों को लक्ष्य करते हुए अपनी मिसाइलें तैनात कर दी थी। तब दोनो महाशक्तियों के बीच तनाव अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया और परमाणु युद्ध की आशंका उत्पन्न होने लगी, लेकिन कूटनीतिक प्रयासों से यह संकट टल गया।
इसके बाद शीत युद्ध सामान्य स्तर पर ही चलता रहा और धीरे-धीरे अपने अंत की ओर बढ़ रहा था।
शीत युद्ध के समय काल को चार चरणों में विभाजित किया जाता है।
- 1946 से 1953 तक शीत युद्ध का आरंभिक चरण था।
- 1953 से 1963 शीत युद्ध का द्वितीय चरण था, जो कि शीत युद्ध का सबसे उच्चतम तनाव वाला चरण था।
- 1963 के बाद 1979 तक शीत युद्ध धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा था।
- 19 79 से 1991 तक शीत युद्ध का सबसे आखिरी चरण रहा जो शीत के खात्मे का चरण था।
शीत युद्ध का अंत
शीत युद्ध का औपचारिक अंत 1991 में तब हुआ जब सोवियत संघ टूट कर बिखर गया। सोवियत संघ 15 राष्ट्रों को मिलाकर बनाया गया एक राष्ट्र संघ था। 1991 में यह सभी राष्ट्र सोवियत संघ से से टूट कर अलग हो गए और सोवियत रूस एक महाशक्ति नही रह गया। सोवियत संघ का उत्तराधिकारी रूस बना जो सोवियत संघ का सबसे बड़ा और मुख्य देश था। लेकिन ये देश अब महाशक्ति नही रह गया था।
यह शीत युद्ध का अंत था क्योंकि अब केवल एक ही महाशक्ति रह गई थी जो कि अमेरिका था। पूरा विश्व दो ध्रुवीय व्यवस्था की जगह एक ध्रुवीय व्यवस्था में बदल गया जो आज तक जारी है।