कबीर घास न निंदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली हुई।। अर्थ बताएं।


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रस के प्रयोगनि के सुखद सु जोगनि के

कबीर घास न निंदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली हुई।।

अर्थ :  कबीरदास कहते हैं के इस संसार में हर छोटी से छोटी वस्तु का महत्व होता है। हमें किसी भी वस्तु को छोटा नहीं समझना चाहिए। हर छोटी से छोटी वस्तु का कोई ना कोई महत्व अवश्य होता है। कबीरदास उदाहरण देते हुए कहते हैं कि रास्ते में पड़ा हुआ घास का छोटा सा तिनका लोगों को भले ही महत्वहीनलगे और मनुष्य अपने अहंकार में आकर घास के उस  तिनको अपने पैर से रौंदता रहता हो लेकिन वही घास का छोटा सा तिनका यदि हवा में उड़ कर मनुष्य की आँख मे पड़ जाए मनुष्य बेचैन हो जाता है। घास का एक छोटा सा तिनका भी मनुष्य को बेचैन कर सकता है।

यहाँ पर कबीरदास ने तिनके का उदाहण देकर यह समझाने का प्रतीक किया है कि संसार में हमें कभी भी दूसरों को छोटा नहीं समझना चाहिए। छोटी से छोटी वस्तु के अपना महत्व होता है।

 


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