बालगोबिन भगत किसे साहब मानते थे?

‘बालगोबिन भगत’ ‘कबीर’ को अपना साहब मानते थे।

 

विस्तार से

बालगोबिन भगत कबीर को अपना साहब मानते थे। वह संत कबीर के प्रति अपनी श्रद्धा रखते थे। इसी कारण उनका पहनावा भी कबीरपंथियों जैसा था।

कबीरपंथी वे लोग होते थे, जो कबीर के सिद्धांतों का पालन करते थे और कबीर के सिद्धातों में अपनी श्रद्धा रखते थे।
बालगोबिन भगत भी कबीर को अपना साहब मानते थे और उनके प्रति असीम श्रद्धा और विश्वास रखते थे।
उनके पहनावे में उनके गले में तुलसी की माला और माथे पर रामानंदी टीका होता था।

पारिवारिक जीवन पालन करने वाले बालगोबिन भगत को साधु कहना कहाँ तक तर्क सम्मत है?

जब भी उनके खेत में कृषि उपज होती थी, तो वह सबसे पहले अपनी कृषि की उपज को कबीरपंथी मठ में ले जाकर चढ़ावे के रूप में अर्पित कर देते थे। वहां से बदले में जो कुछ भी प्रसाद रूप में मिलता, उसी से अपना घर चलाते थे। वह कबीर के सिद्धांतों का पालन करते थे और हर बात खरी-खरी बोलते थे।

वह दूसरे की वस्तु को छूना या पाना गुनाह समझते थे। वह अपने दिनभर कबीर के पदों का गायन करते थे। कबीर ने आत्मा को परमात्मा का ही अंश माना है। बालगोबिन भगत भी कबीर के सिद्धांत का पालन करते हुए आत्मा को परमात्मा मानते थे। इसी कारण उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु पर आम लोगों की तरह शोक व्यक्त नहीं किया।

बालगोबिन भगत के अटल निर्णय के आगे किस को झुकना पड़ा?

संदर्भ :

‘बालगोबिन भगत’ पाठ रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखा गया पाठ है, जो एक ऐसे व्यक्ति बालगोबिन भगत पर केंद्रित है, जो आम गृहस्थ व्यक्ति होते हुए भी संन्यासी जैसा जीवन व्यतीत करते थे।

बालगोबिन भगत के आत्मसम्मान के बारे में जानकारी दें।

लोगों को कैसे पता चला कि बालगोबिन भगत अब इस दुनिया में नहीं रहे?

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