जल और धरती के बीच संवाद लिखिए।

संवाद

जल और धरती के बीच संवाद

धरती : जल भाई! क्या हाल-चाल हैं कहाँ बहे जा रहे हो?

जल : मुझे बहुत दूर जाना है। बहना मेरा काम है। मुझे लोगों की प्यास बुझानी है।

धरती : वह बात तो ठीक है। बहना तुम्हारा काम है और स्थिर रहना मेरा काम। इसीलिए तुम चल हो और मैं अचल। तुम्हारे मजे हैं तुम हर जगह घूमते रहते हो चंचल बनकर सारे जग में विचरण करते हो। मैं तो बस एक जगह पड़ी रहती हूँ।

जल : ऐसा ना बोलो। सबका अपना महत्व होता है। मैं भी तुम्हारे अंदर ही आश्रय पाता हूँ। मैं तालाब के रूप में तुम्हारे गोद में ही आश्रय पाता हूं मैं नदी के रूप में तुम्हारी गोद में ही आश्रय पाता हूँ। भले ही समुंदर के रूप में मैं तुमसे बहुत विशाल हूं लेकिन तुम्हारे बिना मेरा कोई महत्व नहीं।

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धरती : यह तुम मेरे मन को बहलाने के लिए बात कह रहे हो।

जल : यह मन को बहलाने वाली बात नहीं है सत्य है यही यथार्थ है। तुम नहीं हो तो मेरा भी कोई महत्व नहीं। तुम्हारी गोद में ही प्राणी जन्मते हैं पलते बढ़ते है। जब प्राणी ही नहीं होंगे तो मुझ जल का क्या महत्व?

धरती : बात तो तुमने ठीक कही। चलो और दर्शन की बातें बहुत हो गई यह बताओ तुम कहां जा रहे हो।

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जल : मुझे कहते हुए बहुत दूर जाना है मेरा कोई और ठिकाना नहीं कहा मैं जाकर रखूंगा मुझे खुद पता नहीं होता मैं तो बस निरंतर बैठा रहता हूँ और लोगों की प्यास बुझाता हूँ। खेती में काम आता हूँ, जिससे अन्न उपजता है।अरे हाँ, खेती से ध्यान आया खेती तो तुम्हारी गोद में ही होती है। तुम ना हो तो खेती कैसे होगी तब मेरा क्या महत्व मेरा क्या काम।

धरती : धन्यवाद शुक्रिया मुझे मेरा महत्व बताने के लिए यह तुम्हारी दरियादिली है जो मेरी थी फिर सोचा किए जा रहे हो मैं तो तुम्हारा भी कम नहीं तुम्हारे बिना इस जग में जीवन संभव नहीं है।

जल : हाँ हम दोनों का महत्व है और हम दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। चलो अब मैं चलता हूं फिर कभी मिलेंगे।

धरती : ठीक है।

 

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