भ्रष्टाचारी जमाखोरी की आदत बड़ी पुरानी है, यह कुरीतियां मिटाने तो नई चेतना लानी है।
कवि बालस्वरूप राही द्वारा रचित कविता जब ‘हम बड़े होंगे’ की इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है…
सरल भावार्थ : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि का कहने का आशय यह है कि हमारे समाज में भ्रष्टाचारी और जमाखोरी की प्रवृत्ति बहुत पुरानी है। यह प्रवृत्ति हमारे देश और समाज में गहराई तक अपनी जड़ें जमा चुकी है। हमें इन कुरीतियों को मिटाना है। समाज को जागरूक करना है। समाज को ईमानदार बनाना है। तब ही हम आगे बढ़ सकेंगे।
‘चरणों में सागर रहा डोल’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?
विशेष व्याख्या : यहाँ पर कहने का तात्पर्य यह है कि सरकारी विभागों तथा अन्य निजी विभागों में भ्रष्टाचार एक आम समस्या है। अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं। कोई भी काम बिना रिश्व दिए नही होता। भ्रष्टाचार की इस समस्या के अतिरिक्त अधिक मुनाफे के लालच में जमाखोरी करना तथा वस्तु की जमा करके बाद में उसकी काला बाजारी करना यह प्रवृत्ति भी बहुत पुरानी है। यह दोनों प्रवृत्तियां समाज के लिए कुरीति बन गई हैं। हमें इन कुरीतियों को मिटाना है। समाज के लोगों को इन बुराइयों से दूर रहने की लिए जागरूक करना है। ऐसा करने के बाद ही हमारा देश समाज आगे बढ़ सकता है।
‘वह देश कौन सा है?’ कविता की व्याख्या करें।
टिप्पणी : ‘जब हम बड़े होंगे’ कविता के माध्यम से कवि बालस्वरूप राही ने बच्चों को प्रेरणा देने का कार्य किया है। कवि बच्चों को संदेश देते हुए कहते हैं कि जब बच्चे बड़े होंगे तो देश की इस समय जो वर्तमान तस्वीर है, वैसे ही तस्वीर नहीं रहनी चाहिए। हमें देश में व्याप्त हर बुराई को मिटा देना चाहिए ताकि जब बच्चे बड़े हों तो उन्हें एक आदर्श देश मिले।