पतझड़ हो जाने पर भी उपवन क्यों नहीं मरा करता।

पतझड़ हो जाने पर भी उपवन मरा इसलिए नहीं करता क्योंकि पतझड़ थोड़े समय के लिए उपवन की सुंदरता को ही नष्ट कर पाता है। बहार आने पर उपवन फिर खिल जाता है और पतझड़ उपवन को नहीं मार पाता। इसलिए पतझड़ कितने भी आए वह उपवन की सुंदरता को कुछ समय के लिए भले ही कर दे, लेकिन वह बहार आने पर फिर बसंत आने पर फिर हरा-भरा हो जाता है।

‘कुछ सपनों के मर जाने से जीवन मरा नहीं करता’ कविता के माध्यम से कवि नीरज कहते हैं कि छुप-छुप कर आँसू बहाने वालों के जीवन में कुछ दुखों के आ जाने से जीवन नष्ट नहीं हुआ करता बिल्कुल उसी प्रकार जिस तरह पतझड़ के आ जाने से कुछ समय के लिए उपवन की सुंदरता भले ही नष्ट हो जाती है। वह पतझड़ बीत जाने पर बसंत आ जाने पर पतझड़ फिर हरा-भरा होता है। उसी तरह जीवन में छोटे-मोटे दुखों के आ जाने से जीवन समाप्त नहीं हो जाता। दुखों के बीत जाने पर सुख अवश्य आएंगे और जीवन फिर खुशहाल हो उठेगा। इसलिए जीवन में कभी भी निराश नही होना चाहिए।


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