कुछ जंजीरें टूटी हैं, कुछ शेष हैं’, कवि ने पंक्तियाँ किस भाव में कही हैं?​

‘कुछ जंजीरें टूटी हैं, कुछ शेष हैं।’ इस पंक्ति के माध्यम से कवि का भाव यह है कि हमें जो आजादी मिली है वह अभी पूर्ण रूप से नहीं मिल पाई है। अभी हमें गुलामी की कुछ जंजीरों को और तोड़ना है। अंग्रेज भले ही हमारे देश से चले गए हों, हम आजाद हो गए हों, लेकिन अभी भी हम द्वारा किए गए उत्पीड़न और अत्याचार के बाद जो दुष्प्रभाव उत्पन्न हुए, उनका प्रभाव बाकी है। अभी हमें उन सब से पार पाना है।

‘वीरेंद्र मिश्र’ द्वारा लिखित कविता ‘हम को आगे आना है’ की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं..
कुछ जंजीरें टूटी हैं, कुछ शेष हैं,
अब भी भारत माँ के बिखरे केश हैं,
जिधर नजर जाती, आँसू की भीड़ है-
हम पर तुम पर आँख लगाए देश है!
हम न रुकेंगे आगे गया जमाना है!
हमको, तुमको, सबको आगे आना है!

अर्थात कवि कहते हैं, हमें आजादी तो मिल गई है, लेकिन अभी पूरी तरह आजादी नही मिली है। अंग्रेजों ने भारत माता को जो नुकसान पहुँचाया है, अभी हमें उस नुकसान को भरना है। अंग्रेजों के अत्याचार और अन्याय त्रस्त भारतीयों के आँसुओं को पूछना है। हमारे देश के कर्णधारों पर अभी सारा उत्तरदायित्व है। सारा देश उनकी ओर ही देख रहा है। अभी तो हमें मिलकर अपने देश को आगे ले जाना है। अब हम भारतीय रुकने वाले नही हैं, हमे निरंतर आगे बढ़ते ही जाना है।


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आशय स्पष्ट करो। तोड़ता हूँ मोह का बन्धन, क्षमा दो, गाँव मेरे, द्वार घर-आँगन क्षमा दो; आज सीधे हाथ में तलवार दे दो। और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो। ये सुमन लो, यह चमन लो, नीड़ का तृण-तृण समर्पित, चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी हूँ।

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बस्स! बहुत हो चुका कविता का भावार्थ।

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