सफिया की मनःस्थिति को कहानी में एक विशेष संदर्भ में जिस तरह से स्पष्ट किया गया है, यदि हम सफिया की जगह होते तो हमारी मनःस्थिति भी वैसी ही होती। सफिया ने जिस तरह के मानवीय गुणों का प्रदर्शन किया वह कोई भी सामान्य मानव के लिए प्रदर्शित करना स्वाभाविक था। सफिया को ना केवल अपना वादा निभाना था बल्कि अपने और सिख बीवी के प्रति आत्मीय संबंधों की लाज भी रखनी थी। ऐसी स्थिति में उसके इस कार्य में कानून अड़चन बन रहा था। उसके मन में भावना और बुद्धि का द्वंद्व चल रहा था। जहाँ भावना उसे किसी भी तरह लाहौरी नमक ले जाने के लिए प्रेरित कर रही थी वहीं बुद्धि यह कह रही थी कि कानून उसे इस तरह नमक ले जाने की इजाजत नहीं दे रहा। ऐसी स्थिति में साफिया ने व्यवहार कुशल होते हुए जिस तरह का हल निकाला हम भी साथ वैसा ही हल निकालने की चेष्टा करते। जब हम यह देखते कि कानूनी रूप से नमक ले जाना संभव नहीं है, तो हम संबंधित कानूनी अधिकारियों के सामने अपनी समस्या का मानवीय पक्ष रखते और उस आधार पर छूट पाने का प्रयत्न करते जैसा कि सफिया ने किया। इसलिए साफिया ने जैसा किया हम भी वैसा ही करते।
इस पाठ के अन्य प्रश्न :
किसका वतन कहाँ है- वह जो कस्टम के इस तरफ़ है या उस तरफ़।