लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा या मेरा वतन ढाका है जैसे उद्गार किस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं।

‘लाहौर अभी तक उनका वतन है’ और ‘देहली मेरा वतन है’ या ‘मेरा वतन ढाका है’ जैसे उद्गार कुछ सामाजिक यथार्थ को व्यक्त करते हैं कि जमीन के विभाजन के बावजूद भी लोगों के दिलों का विभाजन नहीं हो पाता। जमीन के टुकड़ों को विभाजित कर भले ही उन्हें उस जमीन से अलग कर दिया जाता हो, लेकिन उनका दिल उनका अपनी उसी जन्मभूमि के प्रति लगाव बना रहता है और वह अपनी जन्मभूमि को कभी भूल नहीं पाते। यह उद्गार देश के विभाजन के बाद उपजे दर्द को व्यक्त करते हैं।

भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन के बाद अनेक लोगों को भारत के पाकिस्तान या पाकिस्तान से भारत जाना पड़ा जिस कारण उन्हें अपने मूल स्थान को छोड़ना पड़ा, लेकिन उनकी जन्म भूमि के प्रति हमेशा लगाव बना रहा।

विभाजन के एक वर्ष बीत जाने के बाद भी लोग अपनी जन्मभूमि को नहीं भूल पाते हैं। राजनीतिक कारणों से जमीन को बांट देने से जमीन पर भले ही सीमा रेखा खींच दी गई हो लेकिन लोगों के बीच दिलों की सीमा रेखा नहीं खींच पाई। ये उद्गार उसी यथार्थ को व्यक्त करते हैं।


इस पाठ के अन्य प्रश्न :

जब सफ़िया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम ऑफ़िसर निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप क्यों खड़े थे?

नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में सफ़िया के मन में क्या द्वंद्व था?


‘नमक’ इस पाठ के सारे प्रश्नों के उत्तर एक साथ पाने के लिए नीचे दिए गए लिंक को ओपन करे

नमक : रज़िया सज्जाद ज़हीर (कक्षा-12 पाठ-16) हिंदी आरोह 2

Leave a Comment