संदर्भ : यह पंक्तियां कवि ‘रामावतार त्यागी’ द्वारा रचित कविता ‘और भी कुछ दूं’ की हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने अपने देश के प्रिय प्रति अपना सर्वस्व अर्पित करने की भावना प्रकट की है।
भावार्थ : कवि कहते हैं कि हे मेरे देश! मैं आपकी लिए अपने सारे मोह के बंधन तोड़ देना चाहता हूँ। मेरे मन में अपने प्रियजनों आदि के प्रति जो भी मोह-माया के बंधन हैं, वह मैं तोड़कर केवल आपकी सेवा में ही अर्पित हो जाना चाहता हूँ। इसलिए हे मेरे गाँव! हे मेरे घर-आंगन! यह मेरे घर के द्वार! तुम सब मुझे क्षमा कर देना, क्योंकि मैं अपना मोह तुम्हारे प्रति समाप्त कर रहा हूँ। अब वह समय आ गया है कि तुम मेरे सीधे हाथ में एक तलवार पकड़ा दो। ताकि मैं अपने देश के सम्मान की रक्षा के लिए निकल पडूं।
हे मेरे प्यारे देश! मैं तुम्हारी सेवा के लिए, तुम्हारे सम्मान के लिए आपकी रक्षा के लिए, अपने घर आंगन, बाग-बगीचे के सभी फूल, अपने घर का तिनका-तिनका अर्पण कर देना चाहता हूँ। मेरे पास जो कुछ भी है, वो अपना सर्वस्व मैं आपकी सेवा में अर्पित कर देना चाहता हूँ।
इन पंक्तियों के माध्यम से अपने देश के प्रति अपने प्रेम की अन्यतम भावना को प्रकट किया है और देश के प्रति अपना सब सर्वस्व अर्पित कर देने की बात कही है।
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