आपके विचार से मूक और सवाक् फ़िल्मों में से किसमें ज़्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है और क्यों?

हमारे विचार से मूक और सवाक् फिल्मों में से मूक फ़िल्मों में अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता होती है क्योंकि मूक फिल्मों में संवाद नहीं होते और संवाद के द्वारा जो बात कहनी होती है, वह अपने हाव-भाव और भरे अभिनय द्वारा ही कहनी होती है। इसलिए मूक फिल्मों में अधिक अभिनय कौशल की आवश्यकता पड़ती है।
सवाक फिल्मों में यह आसानी होती है कि अपनी बात कहने के लिए आधा काम तो संवाद ही कर देते हैं। हाव-भाव उस में सहायक की भूमिका निभाते हैं। जबकि मूक फिल्मों में सब कुछ केवल अपने हाव-भाव से ही कहना होता है।

बेचारे हाव-भाव भी बेहद कुशलता से प्रदर्शित करने होते हैं ताकि दर्शक उन्हें आसानी से समझ सकें और उनके पीछे कही गई बात के सार को समझ सकें। इसलिए मूक फिल्मों में बहुत ही अधिक अभिनय कौशल की आवश्यकता होती है, जिसके लिए अधिक परिश्रम लगता है। इसलिए मूक फिल्मों में अभिनय करना सलात फिल्मों में अभिनय करने से अधिक कठिन है।

संदर्भ पाठ :

चार्ली चैप्लिन यानि हम सब : विष्णु खरे (कक्षा-12 पाठ-15 हिंदी अंतरा भाग 2)


इस पाठ के अन्य प्रश्न..

चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता?

चार्ली सबसे ज़्यादा स्वयं पर कब हँसता है?


 

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चार्ली चैप्लिन यानि हम सब : विष्णु खरे (कक्षा-12 पाठ-15) हिंदी आरोह 2

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