चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी/करुणा और हास्य रस का सामान्य हमारी भारतीय कला और सौंदर्य शास्त्र की परिधि में इसलिए नहीं आता क्योंकि इन तीनों का सामंजस्य से हमारी भारतीय परंपरा नहीं रही है। हमारी भारतीय परंपरा में करुणा और हास्य का सामंजस्य देखने को नहीं मिलता। हास्य को हमारे शास्त्रों का अभिन्न अंग नहीं मांना गया है। यह मात्र विदूषक तक सीमित रखा गया है। हमारी भारतीय परंपरा में स्वयं पर हँसना या किसी पर हँसना पारंपरिक नहीं रहा है।
हमारे भारतीय कला और सौंदर्य शास्त्रों में त्रासदी एवं करुणा का तो सामंजस्य देखने को मिलता है, लेकिन इनके साथ हास्य का सामंजस्य देखने को नहीं मिलता। करुणा का हादसे में बदल जाना हमारे भारतीय परंपरा में निहित नहीं रहा है।
हमारे शास्त्रों में जो भी हास्य का वर्णन मिलता है, वह प्रायः विदूषक अथवा दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्तियों के संदर्भ में ही मिलता है और यह एक छोटे से हिस्से तक ही सीमित रहता है। इसी कारण चैप्लिन की फिल्मों में निहित करुणा और हास्य का सामंजस्य हमारे भारत की कला और सौंदर्य शास्त्र की परिधि में नहीं आता है।
संदर्भ पाठ :
चार्ली चैप्लिन यानि हम सब : विष्णु खरे (कक्षा-12 पाठ-15 हिंदी अंतरा भाग 2)
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चार्ली चैप्लिन यानि हम सब : विष्णु खरे (कक्षा-12 पाठ-15) हिंदी आरोह 2