लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में रस को अधिक श्रेयस्कर माना है। लेखक ने रस को कलाकृति से श्रेयस्कर कर इसलिए माना है, क्योंकि यह किसी कलाकृति को जीवंत बनाते हैं। बिना रस के कोई भी कलाकृति में जीवंतता दिखाई नहीं देती। रस उस कलाकृति के अंदर एक भाव और एक जीवंतता तथा अनुभूति पैदा करते हैं। इसीलिए लेखक ने रस को कलाकृति से श्रेयस्कर माना है। अनेक तरह की कलाकृतियां रही हैं, जिन में विद्यमान रसों के कारण उन कलाकृतियों का गुण कई गुना अधिक बढ़ गया है।
एक साथ आकर रस एक नई विशिष्टता प्रदान करते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ कई रस एक साथ आकर उत्पन्न होते हैं।
उदाहरण के लिए किसी जंगल में कई लोग पिकनिक मना रहे हैं, उनमें हंसी मजाक हो रहा है तो वहां पर हास्य सदस्य उत्पन्न हो रहा है। अचानक उस जंगल में कोई हिंसक जंगली जानवर आ जाए तो वह सभी लोग भय से आक्रांत हो जाएंगे, तब वहाँ पर भयानक रस उत्पन्न होगा।
इसी तरह युद्ध भूमि में सैनिक वीरता के भाव से दुश्मन से युद्ध करता है, तो वीर रस से भरा है। लेकिन यदि सैनिक वीरगति को प्राप्त हो जाता है तो उसके साथियों के मन में करुण रस वाला भाव उत्पन्न होता है।
संदर्भ पाठ :
चार्ली चैप्लिन यानि हम सब : विष्णु खरे (कक्षा-12 पाठ-15 हिंदी अंतरा भाग 2)
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चार्ली चैप्लिन यानि हम सब : विष्णु खरे (कक्षा-12 पाठ-15) हिंदी आरोह 2