‘चैप्लिन ने ना सिर्फ फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दशकों की वर्ग तथा वर्ण व्यवस्था को भी थोड़ा।’ इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने और दर्शकों की वर्ण एवं वर्ण व्यवस्था तोड़ने का अभिप्राय यह है कि चैप्लिन की फिल्में हर वर्ग के लोगों को पसंद आती थी। उन्होंने जो भी फिल्में बनाईं वह आम वर्ग से लेकर हर वर्ग के लोगों को ध्यान में रखकर बनाई जाती थीं। इस तरह हर वर्ग के दशकों तक उनकी पहुंच संभव थी।
सामान्य से सामान्य और निचले से निचला वर्ग का व्यक्ति भी उनकी फिल्मों से खुद का जुड़ाव महसूस करता था। उनकी फिल्मों में सभी वर्गों की समस्याओं, सुख-दुख तथा अन्य बातों को पूरा स्थान मिलता था। इसी कारण हर वर्ग विशेषकर सामान्य वर्ग, जिसमें गरीब, मजदूर आदि आते थे, वह उनकी फिल्मों से निरंतर जुड़ते गए।
जिस समय चैप्लिन में सक्रिय थे, उस समय फिल्में उच्च वर्ग के मनोरंजन का साधन थीं, लेकिन चैप्लिन ने इस परिपाटी को तोड़ा और अपनी फिल्मों को सामान्य वर्ग तक भी पहुंचाया। इस तरह उन्होंने फिल्मी लोकतंत्र स्थापित किया।
उन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से वर्ण व्यवस्था पर भी प्रहार किया। वे अपनी विशेष वर्ग के दर्शकों या विशेष वर्ण के दर्शकों को ध्यान में रखकर नहीं बनाते थे, बल्कि समाज के सभी वर्गों के लिए बनाते थे। इस तरह उन्होंने दर्शकों की वर्ण और वर्ग व्यवस्था को तोड़ा।
हम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि फिल्में कला होती हैं और कला सबके लिए होती है। कला पर किसी भी विशेष वर्ग का एकाधिकार नहीं होना चाहिए बल्कि कला को इस तरह पेश किया जाना चाहिए कि वो हर वर्ग का व्यक्ति उससे जुड़ सके।
संदर्भ पाठ :
चार्ली चैप्लिन यानि हम सब : विष्णु खरे (कक्षा-12 पाठ-15 हिंदी अंतरा भाग 2)
इस पाठ के अन्य प्रश्न..
लेखक ने ऐसा क्यों कहा कि चार्ली चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा ?
लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों? गांधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा?
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चार्ली चैप्लिन यानि हम सब : विष्णु खरे (कक्षा-12 पाठ-15) हिंदी आरोह 2