भाव : सेवा के बदले हमें किसी की इच्छा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जब हम सेवा के बदले में किसी इच्छा का भाव रखते है तब हमारे द्वारा की गई सेवा का कोई मोल नहीं रहता है । वह सेवा खत्म हो जाती है ।
हमें हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए कभी भी फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए । फल की इच्छा रखने से हम अपने अंदर एक इच्छा प्रकट करते है । इच्छा प्रकट करने से हमारे मन में लालच आ जाता है, हम लालच में आकर सेवा करने लगते है । लालच में गई सेवा का कोई अर्थ नहीं होता है ।
हमें जीवन में निस्वार्थ मन से सेवा करनी चाहिए । जीवन में अच्छे कर्म करना चाहिए । कभी भी किसी से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए । हमें भगवान समय के साथ सब कुछ देता है, हमें समझने की जरूरत होती है ।
ये भी देखें…
तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
सफलता की, विजय की, उन्नति की कुंजी तो अविचल श्रद्धा ही है। इस वाक्य का भाव स्पष्ट कीजिए।
कबीर की साखियां का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
मैंने तुम्हें मार कर धर्म की रक्षा की है इसका क्या भाव या आशय है सविस्तार स्पष्ट कीजिए।
इसीलिए हम प्यार की, करते साज-सम्हार, नफरत से नफरत बढ़े, बढ़े प्यार से प्यार। भावार्थ लिखो।