यो मा पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य। रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि। अर्थ बताएं।

यो मा पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य।
रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि।
अर्थ : कुत्ता बालक से कह रहा है कि जो मालिक मुझे बेटे की तरह पाल रहा है, उसके घर की सुरक्षा करने के कार्य में मुझे थोड़ा भी पीछे नहीं हटना चाहिएय़ बालक कुत्ते की स्वामिभक्ति की इसी भावना से प्रेरणा ले रहा है।
इस श्लोक में किसी कुत्ते में कर्तव्य पालन की भावना अभिव्यक्त होती है। वह अपने स्वामी के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होता है, जो स्वामी उसका पालन पोषण करता है उसके प्रति कुत्ता पूरी तरह स्वामी भक्ति का प्रदर्शन करता है और अपने स्वामी की रक्षा करने के कर्तव्य से जरा भी पीछे नहीं हटता।
कुत्ते की अपने स्वामी के प्रति निष्ठा को देखकर बालक भी प्रभावित होता है और वह विद्या अध्ययन के अपने कर्तव्य की ओर आकृष्ट होता है और विद्याध्ययन करने के अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटता।

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वे सब खेल रहे हैं। हम दोनों खा रहे हैं। सीता लिख रही है। संस्कृत अनुवाद​

धनेन बलवाल्लोके धनाद् भवति पण्डित:। पश्यैनं मूषकं पापं स्वजाति समतां गतम्। संस्कृत श्लोक का हिंदी अर्थ?

प्रदोषे दीपकः चन्द्रः प्रभाते दीपकः रविः। त्रैलोक्ये दीपकः धर्मः सुपुत्रः कुल-दीपकः।। स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।। उत्तमे तु क्षणं कोपो मध्यमे घटिकाद्वयम्। अधमे स्याद् अहोरात्रं चाण्डाले मरणान्तकम्।। शैले-शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे-गजे। साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न वने-वने।। उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे। राजद्वारे श्मशाने च यः तिष्ठति स बान्धवः।।​ सभी श्लोक का अर्थ बताएं।

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