बालक बसंत का बिछौना पेड़ पौधों के नए-नए कोमल पत्तों से बना बताया गया है।
कवि ‘देव’ अपनी कविता ‘डार द्रुम पलना, बिछौना नव-पल्लव के’ की इन पंक्तियों में कहते हैं कि…
डार द्रुम पलना, बिछौना नव-पल्लव के,
सुमन झगूला सोहै, तन छबि भारी दै।
अर्थात : कामदेव रूपी राजा बसंत रूपी बालक के लिए वृक्षों के कोमल पत्तों ने बिछौना बनाकर रखा है तथा वृक्षों की डालों का पालना उसके लिए झूले का काम कर रहा है। अपने शरीर पर फूलों का शोभायमान झगुला पहनाकर पवन उसे झूला रहा है। मोर और तोता उसके साथ बालक जैसी बातें कर रहे है।
इस तरह बालक रूपी बसंत का बिछौना पेड़ पौधों के नए-नए कोमल पत्तों ने बना रखा है।
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