तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश
तुलसीदास भक्ति काल के सगुण विचारधारा के रामाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि रहे हैं। वह अपने इष्ट देव प्रभु श्रीराम के प्रति अपनी अनन्य भक्ति भावना प्रकट करने के लिए जाने जाते हैं। उन्हें अपने इष्ट देव के प्रति परम विश्वास था और उन्होंने अपने पदों के माध्यम से अपनी भक्ति भावना को स्पष्ट रूप से प्रकट किया है।
तुलसीदास की भक्ति में श्रद्धा और विश्वास का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। तुलसीदास ने अपने दोहों के माध्यम से प्रभु श्री राम को अत्यंत उच्च स्तर पर रखा है और उनके समान अन्य किसी को नहीं माना है। उन्होंने श्री राम को अनेक नामों की संज्ञा दी है। उन्होंने अपने इष्ट देव श्रीराम का वर्णन सगुण एवं निर्गुण, साकार एवं निराकार दोनों तरह के रूपों में किया है। उन्होंने प्रभु श्रीराम की लीला तथा उनकी महिमा का अद्भुत बखान किया है।
तुलसीदास को श्रीराम की अनन्य भक्ति के लिए जाना जाता है। उनकी अपने इष्टदेव प्रभु श्री राम के प्रति विश्वास की पराकाष्ठा एकदम उच्च स्तर पर रही है। तुलसीदास अपने प्रभु के प्रति विश्वास करते हुए कहते हैं कि जिस तरह भोजन शरीर की भूख को मिटाने के लिए होता है और अत्यन्त सुखदाई लगता है। वैसे ही प्रभु भक्ति मन और आत्मा की भूख को मिटाने के लिए परम सुखदाई होती है।
तुलसीदास कहते हैं कि अपने इष्ट देव के प्रति सेवक की तरह करते हुए सेवा की भावना अपनाने चाहिए। जब तक हम अपने प्रभु के प्रति सेवा का भाव मन में नहीं लाएंगे, तब तक इस संसार में हमारा उद्धार नहीं हो सकता। तुलसीदास ने अपने भक्ति पदों में विनय की भावना को भी प्रमुखता दी है। उनकी भक्ति दास्यता भाव से ओतप्रोत रही है। उनकी भक्ति में दैन्य एवं विनय भाव की प्रधानता है। तुलसीदास की भक्ति भावना लोक कल्याण की भावना से प्रेरित रही है। वह केवल अपने उपासक और इष्ट की उपासना तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने अपने ऐसे अनेक व्यापक पदों की भी रचना की है जो लोक कल्याण की भावना को प्रकट करते हुए लोक समस्याओं पर केंद्रित रहे हैं।
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