रैदास जी की भक्ति मे किस भाव की प्रधानता है? 1. प्रेम भाव 3. भक्ति भाव 3. दास्य भाव​

रैदास जी की भक्ति मे किस भाव की प्रधानताहै?

सही विकल्प है

3. दास्य भाव​

 

विस्तार से जानें

रैदास की भक्ति ‘दास्य भाव’ से भरी हुई है। रैदास स्वयं को प्रभु का दास कहते हैं। उन्होंने प्रभु के प्रति स्वयं को समर्पित कर दिया है और अपने भक्ति में दास्य का भाव भर दिया है। वह स्वयं पुत्र प्रभु का दास मानते हैं।

वह अपने पदों में प्रभु को कभी गरीब नवाज तो कभी दीनदयाल कहते हैं। उनके पदों में दास्य के भाव की प्रधानता है। उन्होंने स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित कर दिए हैं। उन्होंने ईश्वर को स्वामी माना है और स्वयं को ईश्वर का दास मानकर उनके प्रति पूरी तरह खुद को समर्पित कर दिया है। इसलिए रैदास की प्रभु भक्ति दास्य भाव अर्थात दसिया भाव की है।

रैदास भक्ति काल के एक प्रमुख कवि थे। वह भक्ति काल की निर्गुण भक्ति शाखा के ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। उन्होंने ईश्वर के निराकार रूप की आराधना पर बल दिया है।

 


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