कवित्त/सवैया : घनानंद (कक्षा-12 पाठ-11 हिंदी अंतरा भाग 2)

NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

कवित्त/सवैया : घनानंद (कक्षा – 12, पाठ – 11, अंतरा भाग – 2)

KAVITTA/SAVAIYA : GHANAND (Class-12 Chapter-11, Hindi Antra 2)


पाठ के बारे में…

इस पाठ में कवि घनानंद की रचनाओं से 2 कवित्त और 2 सवैये दिए गए हैं।

पहले कवित्त में कवि घनानंद ने अपनी प्रेमिका सुजान के प्रति के दर्शन की अभिलाषा प्रकट करते हुए अपने मन की भावना व्यक्त की है।

दूसरे कवित्त में कवि ने अपनी नायिका से ताने-उलहाने कर रहा है।

पहले सवैये में कवि ने विरह और मिलन की अवस्थाओं की तुलना की है।

दूसरे सवैये में कवि ने अपनी प्रियतमा को भेजे प्रेम-पत्र के विषय में अपनी सोच व्यक्त की है।

कवि के बारे में…

घनानंद रीतिकाल काव्य धारा के एक प्रमुख कवि थे। वे रीतिकाल के रीतिमुक्त यानि संत काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि के रूप में विख्यात थे। वह दिल्ली के बादशाह मोहम्मद शाह के मीर मुंशी थे। उनका जन्म 1673 ईस्वी तथा उनका निधन 1760 ईस्वी में हुआ।

सुजान नामक एक स्त्री के प्रति उनका प्रेम था, जिस कारण ही उन्होंने सुजान पर आधारित अनेक रचनाएं की थीं। सुजान के प्रति प्रेम के कारण ही बादशाह ने उन्हें अपने राजदरबार से निकाल दिया था। बाद में सुजान ने भी उनके साथ बेवफाई की इस कारण वह निराश एवं दुखी होकर वृंदावन चले गए और निंबार्क संप्रदाय में दीक्षित होकर भक्त के रूप में अपना शेष जीवन निर्वाह किया।

उनकी रचनाओं में अपनी प्रेमिका सुजान के प्रति उनके प्रेम एवं पीड़ा के दर्शन मिलते हैं।


कवित्त/सवैया : घनानंद


पाठ के हल प्रश्नोत्तर…

कवित्त/सवैया

प्रश्न 1

कवि ने ‘चाहत चलन ये संदेसो ले सुजान को’ क्यों कहा है?

उत्तर :

कवि ने ‘चाहत चलन ये संदेसो ले सुजान’ इस पंक्ति के माध्यम से अपनी प्रेमिका सुजान से मिलने के लिए अपनी व्यग्रता प्रकट की है। कवि अपनी प्रेमिका से बार-बार मिलने की प्रार्थना कर रहा है। लेकिन उसकी प्रेमिका पर कवि की प्रार्थना तथा कवि के दुख का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ रहा है। अपनी प्रेमिका के इसी उपेक्षा के कारण कवि का मन दुखी है।

कवि तो बस केवल एक बार अपनी प्रेमिका के मिलने की आस लगाए बैठा है क्योंकि कवि को ऐसा लग रहा है कि उसका अंत समय निकट आ गया है। इसी कारण कवि बहुत लंबे समय यह प्रार्थना कर रहा है कि वो लंबे समय से अपनी प्रेमिका के आने की प्रतीक्षा कर रहा है, लेकिन उसका कोई भी खोज खबर नहीं मिल रही। उससे मिलने की आस में ही कवि के प्राण अटके हुए हैं एक बार उसे अपनी प्रेम का का संदेश आ जाए तो वह संदेश को सुनकर ही अपनी मृत्यु को प्राप्त हो जाए।

इस तरह कवि ने इस पंक्ति के माध्यम से अपनी प्रेमिका के संदेश को ही अपने जीवन का आधार बताकर उस संदेश को पाने के लिए व्याकुल है ताकि प्रियंका का संदेश पाने के बाद वह शांति से अपने प्राण त्याग दे।


प्रश्न 2

कवि मौन होकर प्रेमिका के कौन से प्रण पालन को देखना चाहता है?

उत्तर :

कवि मौन होकर अपनी प्रेमिका के उस प्रण-पालन को देखना चाहता है जिस प्रण-पालन में उसकी प्रेमिका ने कवि के प्रति कठोरता का भाव अपनाया हुआ है। कवि की प्रेमिका ना तो उससे मिलने आती है और ना ही अपना कोई संदेश भेजती है। इससे कभी के हृदय को बहुत ही कष्ट हो रहा है। कलि इसीलिए यह कहना चाहता है कि वह मौन होकर अपनी प्रेमिका के उस पर प्रण-पालन को देखना चाहता है कि कब तक उसकी प्रेमिका उसके प्रति उपेक्षा एवं कठोरता का भाव अपनाए रहती है।

कवि उसे बार-बार पुकार रहा है और उसकी पुकार को उसकी प्रेमिका कब तक अनसुना करती है, कवि यही देखना चाहता है।


प्रश्न 3

घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर :

कवि घनानंद की रचनाएं प्रेमभाव को प्रकट करती हुई रचनाएं हैं। अपनी प्रेमिका के प्रति अपने सुंदर मनोभावों को प्रकट करने के लिए कवि ने अपनी रचनाओं में अलंकारों का बड़े ही कुशलता से प्रयोग किया है। कवि घनानंद की रचनाएं ब्रज भाषा में रचित की गई है और इस भाषा में वह महारत हासिल करते थे। उनकी भाषा में साहित्यित पुट दिखाई देता है। उनकी भाषा परिष्कृत व मंजी हुई है।
उनकी की रचना में लाक्षणिकता का गुण देखने को मिलता है तथा उनमें लक्षणा और व्यंजना का मिश्रण देखने को मिलता है।
वे रचनाओं के माध्यम से सर्जनात्मक के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में मुहावरों का भी सुंदर प्रयोग किया है। उन्होंने अपनी रचनाओं में शब्दों को तुकबंदी के आग्रह से तोड़ा-मरोड़ा भी है। इसके अलावा उन्होंने अपनी रचनाओं में नवीन शब्दों का भी प्रयोग किया है।


प्रश्न 4

निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों की पहचान कीजिए।
(क) कहि कहि आवन छबीले मनभावन को, गहि गहि राखति ही दैं दैं सनमान को।
(ख) कूक भरी मूकता बुलाए आप बोलि है।
(ग) अब न घिरत घन आनंद निदान को।

उत्तर :

निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों की पहचान कीजिए।

(क) कहि कहि आवन छबीले मनभावन को, गहि गहि राखति ही दैं दैं सनमान को।

इस पंक्ति में ‘कहि-कहि, ‘गहि-गहि’ तथा ‘दैं-दैं’ इन शब्द-युग में ‘पुनरुक्ति प्रकाश’ अलंकार की छटा बिखर रही है। कवि ने ‘पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार’ का सुंदर प्रयोग किया है।

(ख) कूक भरी मूकता बुलाए आप बोलि है।

इस पंक्ति यह कवि ने ‘विरोधाभास अलंकार’ का प्रयोग किया है क्योंकि कवि अपनी चुप्पी को कोयल की कूक के समान मानता है और वह इसके माध्यम से अपनी प्रेमिका पर कटाक्ष भी कर रहा है। कवि का कहना है कि वह मौन रहेगा कुछ नही कहेगा लेकिन फिर भी उसकी प्रेमिका उसके पास आएगी।
कवि यह जानता है कि मौन स्वर को कोई सुन नहीं सकता फिर भी वह मानता है कि कवि की उसकी प्रेमिका उसके मौन के स्वर को सुन लेगी। इस तरह गए यहाँ पर ‘विरोधाभास अलंकार’ प्रकट हो रहा है।

(ग) अब न घिरत घन आनंद निदान को।

इस पंक्ति में घन आनंद इस शब्द में दो अर्थ प्रकट होते हैं। एक घन आनंद का अर्थ अपार प्रसन्नता है, तो दूसरे घन आनंद का अर्थ कवि के नाम घनानंद से है।
पंक्ति में ‘घ’ शब्द की दो बार की आवृत्ति हुई है, इसलिए ‘अनुप्रास अलंकार’ भी प्रकट हो रहा है।


प्रश्न 5

निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) बहुत दिनान को अवधि आसपास परे/खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को
(ख) मौन हू सौं देखिहौं कितेक पन पालिहौ जू/कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।
(ग) तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचन लोचन जात जरे।
(घ) सो घनआनंद जान अजान लौं टूक कियौ पर वाँचि न देख्यौ।
(ङ) तब हार पहार से लागत हे, अब बीच में आन पहार परे।

उत्तर :

निम्नलिखित का आशय स्पष्ट इस प्रकार होगा :

(क) बहुत दिनान को अवधि आसपास परे/खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को।

इस पंक्ति का आशय इस प्रकार है कि कवि यह कहना चाह रहा है कि अपनी प्रेमिका की आस में बहुत समय बीत गया है, लेकिन उसकी प्रेमिका अभी तक नहीं आई है। अब तो कवि के प्राण निकलने को व्याकुल हैं। कवि अपने प्राण त्यागने की कगार पर है, लेकिन उसकी प्रेमिका अभी तक उससे मिलने नहीं आई है।

(ख) मौन हू सौं देखिहौं कितेक पन पालिहौ जू/कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।

कवि अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपनी प्रेमिका के दर्शन कर लेना चाहता है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि वह मौन रहेगा और कुछ भी नहीं बोलेगा। वह मौन रहकर ही यह देखना चाहता है कि उसकी प्रेमिका कब तक उसकी उपेक्षा करती है, कब तक उसकी पुकार को अनसुना करती है। कवि कहता है कि उसकी यह मौन भरी चुप्पी एक दिन उसकी प्रेमिका को बोलने पर विवश कर देगी। कवि की प्रेमिका उसकी उपेक्षा करते हुए उससे बात नहीं कर रही है, लेकिन कवि चुप रह कर ही अपनी पुकार में वो भाव प्रकट कर देना चाहता है कि उसकी मौन भरी पुकार सुनकर उसके पास आने के लिए विवश हो जाए।

(ग) तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचन लोचन जात जरे।

इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने अपनी संयोगावस्था एवं वियोगावस्था दोनों अवस्थाओं का वर्णन किया है। कवि जब संयोग की अवस्था में था यानी उसकी प्रेमिका उसके पास थी तो वह अपनी प्रेमिका के रोज दर्शन करके खुश हो लेता था। वह अपनी प्रेमिका के रूप सौंदर्य को देखकर रोजाना आनंदित होता था। इस तरह उसका जीवन सुखमय व्यतीत हो रहा था ।
परंतु अब स्थिति विपरीत हो चुकी है और कवि वियोग की अवस्था में आ गया है। अब कवि के नेत्र पुरानी स्थिति के बारे में सोच-सोच कर जलने लगते हैं। कवि को अपनी पहले की यादें आती रहती हैं। वह अपनी प्रेमिका की याद में व्याकुल हो उठता है। कवि के नैनों में अब भी अपनी प्रेमिका से पुनः मिलन की आस जगी हुई है।

(घ) सो घनआनंद जान अजान लौं टूक कियौ पर वाँचि न देख्यौ।

इस पंक्ति के माध्यम से कंपनी ने कवि ने अपने हृदय के मनोभावों को एक पत्र के माध्यम से अपनी प्रेमिका सुजान के लिए लिखे थे। कवि के इस पत्र को उसकी प्रेमिका सुजान ने बिना पढ़े ही टुकड़ों-टुकड़ों में फाड़ दिया। अपनी प्रेमिका के व्यवहार से कवि बेहद आहत हुआ। कवि को यह शिकायत है कि उसकी प्रेमिका ने एक बार भी उसके पत्र को खोल कर देखना तक उचित नहीं समझा यानी वह उसकी भावनाओं को नहीं समझती है।

(ङ) तब हार पहार से लागत हे, अब बीच में आन पहार परे।

इस पंक्ति का आशय यह है कि जब कवि अपनी प्रेमिका के पास रहता था। तब प्रियंका की बाँहों का हार उसे अपने शरीर पर पहाड़ के समान लगता था। परंतु आज स्थिति उल्टी हो गई है। आज कवि और उसकी प्रेमिका दोनों अलग-अलग है और दोनों के बीच पहाड़ के रूप में विद्यमान है। यानी अब कवि और उसकी प्रेमरोग की अवस्था में एक दूसरे से दूर-दूर है और उनके बीच दूरी का पहाड़ है।


प्रश्न 6

संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास है, कै अब न घिरत घन आनंद निदान को, अधर लगैं है आनि करि कै पयान प्रान, चाहत चलन ये संदेशो लै सुजान को।
(ख) जान घनआनंद यों मोहिं तुम्है पैज परी जानियैगो टेक टरें कौन थी मलोलिहै।। रुई दिए रहौगे कहाँ लौ बहरायबे की? कबहूँ तौ मेरियै पुकार कान खोलि है।
(ग) तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचत लोचन जात जरे, हित-तोष के तोष सु प्रान पले, बिललात महा दुःख दोष भरे।
(घ) ऐसो हियो हित पत्र पवित्र जु आन-कथा न कहूँ अवरेख्यौ। सो घन आनंद जान सुजान लौं, टूक कियौ पर बाँचि न देख्यौ।

उत्तर :

संदर्भ सहित व्याख्या इस प्रकार है…

(क) झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास है, कै
अब न घिरत घन आनंद निदा को,
अधर लगैं है आनि करि कै पयान प्रान,
चाहत चलन ये संदेशो लै सुजान को।

संदर्भ : यह पंक्तियां हिंदी, अंतरा भाग-2 पुस्तक में संकलित कवि घनानंद के ‘सवैया एवं कवित्त’ से ली गई है। इन पंक्तियों के रचयिता कवि घनानंद हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने अपनी प्रेमिका सुजान से वियोग होने के कारण अपनी दुखद स्थिति का वर्णन किया है। कवि को अपनी प्रेमिका से पुनः मिलन की आस लगी हुई है, लेकिन उसकी प्रेमिका निरंतर उसकी उपेक्षा कर रही है।

व्याख्या : कवि अपनी प्रेमिका को संबोधित करते हुए कहता है कि मैंने तुम्हारे द्वारा कही गई छोटी बातों पर विश्वास कर किया और उसी के कारण आज मेरी यह दशा हुई है। वह बातें अब मुझे उबाऊ लगती है और अब मेरे संताप यानि दुःख को आनंद नहीं प्रदान कर पा रही हैं, वरना एक समय ऐसा था यही बातें मेरे हृदय को असीम आनंद प्रदान करती थी। मेरी हालत ऐसी हो गई है कि मेरे प्राण निकलने को तैयार बैठे हैं। मेरे प्राण इसलिए अटके हैं क्योंकि मुझे तुम्हारे संदेश का इंतजार है। मैं तुम्हारे संदेश को पाकर ही मरना चाहता हूँ।
कवि के कहने का भाव यह है कि उसे अपनी प्रेमिका सुजान के संदेश का इंतजार है और वह मृत्यु शैया पर पड़ा हुआ है और अपनी प्रेमिका के संदेश न मिलने के कारण ही अपने प्राणों को त्याग नहीं पा रहा है।

(ख) जान घनआनंद यों मोहिं तुम्है पैज परी
जानियैगो टेक टरें कौन थी मलोलिहै।।
रुई दिए रहौगे कहाँ लौ बहरायबे की?
कबहूँ तौ मेरियै पुकार कान खोलि है।

संदर्भ : यह पंक्तियां हिंदी, अंतरा भाग-2 पुस्तक में संकलित कवि घनानंद के ‘सवैया एवं कवित्त’ से ली गई है। इन पंक्तियों के रचयिता कवि घनानंद हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि अपनी प्रेमिका के उपेक्षापूर्ण रवैया के कारण अपना दुख प्रकट कर रहा है। कवि का कहना है कि कब तक उसकी प्रेमिका उसकी उपेक्षा करती रहेगी और उसके प्रति निष्ठुर रवैया अपनाती रहेगी।

व्याख्या : कवि अपनी प्रेमिका को संबोधित करते हुए कहता है कि कब तक मेरी तुमसे बहस होती रहेगी। तुमने अपनी जिद के कारण ही मुझसे बोलना छोड़ दिया है। अब तुम्हें अपनी जिद छोड़नी पड़ेगी और मुझसे मुझे बोलना ही पड़ेगा। तुम निरंतर मेरी बातों को अनसुना कर देती हो। लगता है तुमने अपने कानों में भी डाल रखी है।
कवि कहता है कि मैं भी यह देखना चाहता हूं कि कब तक तुम मेरी बातों को अनसुना करती रहोगी। मैं भी अब चुप रहूंगा और कुछ नहीं बोलूंगा। मैं अब मौन रहकर ही अपनी पुकार तुम तक पहुंच आता रहूंगा। एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब मेरी यह पुकार तुम तक पहुंचेगी और तुम मेरी बातों मेरी पुकार के कारण विवश होकर मेरे पास आओगी। कवि के कहने का भाव यह है कि भले ही आज उसकी प्रेमिका उसकी कितना भी उपेक्षा कर रही हो। उसकी बात को अनसुनी कर रही हो लेकिन वह एक दिन अपनी प्रेमिका को अवश्य उससे बात करने के लिए विवश कर देगा। एक दिन उसकी पुकार उसकी प्रियंका तक जरूर पहुंचेगी और वह उससे मिलने के लिए जरूर आएगी और उसके प्रेम निवेदन को स्वीकार कर लेगी।

(ग) तब तौ छबि पीवत जीवत हे,
अब सोचत लोचन जात जरे,
हित-तोष के तोष सु प्रान पले,
बिललात महा दुःख दोष भरे।

संदर्भ : यह पंक्तियां हिंदी, अंतरा भाग-2 पुस्तक में संकलित कवि घनानंद के ‘सवैया एवं कवित्त’ से ली गई है। इन पंक्तियों के रचयिता कवि घनानंद हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने अपनी संयोग अवस्था तथा वियोग अवस्था की तुलना करते हुए अपनी दोनों अवस्थाओं का वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करते हुए कहता है कि जब सब कुछ अच्छा था, तब रोज में तुम्हें देखता था और आनंदित होता था। तुम को देख देखकर ही मैं जीता था और मेरा जीवन सुखमय बीत रहा था। अब तुम मुझसे बिछड़ गई हो, हम दोनों अलग हो गए हैं, इस कारण मैं अब तुम्हारे वियोग में व्याकुल हूँ। अब मुझे वह समय याद आने लगता है, जब हम दोनों एक थे।
इस कारण अपने उस मिलन की अवस्था के बारे में सोच कर मेरे आँखे जलने लगती है। मुझे वे पुरानी यादें बेहद कष्टकारी प्रतीत हो रही है। उस समय तुम मेरे सामने होती थीं, इस कारण मेरे हृदय में हमेशा संतोष व्याप्त रहता था। अब तुम मुझसे अलग हो, मुझसे दूर हो, इसलिए अब मुझे तुम्हारे वियोग में तड़पना पड़ रहा है और अपार दुख झेलना पड़ रहा है।
कवि का कहने का भाव यह है कि जब उसकी प्रेमिका उसके पास थी तो उसका जीवन आनंद से बीत रहा था। वह अपनी प्रेमिका को रोज देखकर खुश होता था, परंतु अब उसकी प्रेमिका उसे छोड़कर जा चुकी है। अब वह अपनी प्रेमिका की याद में तड़प रहा है और पुरानी बातों को याद करके दुखी हो रहा है। उसकी स्थिति अब बेहद कष्ट भरी है।

(घ) ऐसो हियो हित पत्र पवित्र
जु आन-कथा न कहूँ अवरेख्यौ।
सो घन आनंद जान सुजान लौं,
टूक कियौ पर बाँचि न देख्यौ।

संदर्भ : यह पंक्तियां हिंदी, अंतरा भाग-2 पुस्तक में संकलित कवि घनानंद के ‘सवैया एवं कवित्त’ से ली गई है। इन पंक्तियों के रचयिता कवि घनानंद हैं।  इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने अपनी प्रेमिका के निष्ठुरता का वर्णन किया है। कवि का कहना है कि प्रेमिका उसके प्रेम को जानते हुए भी उसे छोड़कर चली गई है और उसकी बातों को अनसुना कर रही है। वे उसके प्रति निष्ठुर बनी हुई है।

व्याख्या : कवि अपनी मनोस्थिति का वर्णन करते हुए कहता है कि मैंने अपने पवित्र ह्रदय से अपनी प्रेमिका के लिए कुछ प्रेम-पत्र लिखे थे। मैं अपने दशा के बारे में अपनी प्रेमिका को बताना चाहता था। मैं अपनी कहानी अपनी प्रेमिका सुजान से कहना चाहता था। लेकिन मेरी सुजान इतनी निष्ठुर हो गई है कि उसने मेरे प्रेम पत्र को पढ़े बिना ही उन्हें टुकड़ों में काट दिया। अपनी प्रेमिका से मुझे ऐसी निष्ठुरता की उम्मीद नहीं थी। उसने मेरी प्रेम भावनाओं को समझा नहीं और मुझे यूं ही अकेला छोड़ कर चली गई।


(योग्यता विस्तार)

प्रश्न 1

निम्नलिखित कवियों के तीन-तीन कवित्त और सवैया एकत्रित कर याद कीजिए। —

तुलसीदास, रसखान पद्माकर, सेनापति।

उत्तर :

ये एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी अपनी पाठ्य पुस्तक में से दिए गए कवियों के कवित्त और सवैये तो खोजें और उन्हें याद करें।

प्रश्न 2

पठित अंश में से अनुप्रास अलंकार की पहचान कर एक सूची तैयार कीजिए।

उत्तर :

पाठ में दिए गए कवित्त और सवैये में अनुप्रास अलंकार के उदाहरण इस प्रकार हैं…

कवित्त
वधि सपास
घिरत
कारि कै
चाहत लन
• नाकानी रसी निहारिबो रौगे कौलौं
पालिहौ
पैरी
टेरें

सवैये

तौ छबि पीवत जीवत है, अब सोचन लोचन जारे।
प्राले
• ब ही सुख-साज-माज टरे।
नि
• पूरन प्रेम को मंत्र महा पन जा मधि सोधि सुधारि है लेख्यौ।
• ताही के चारु रित्र बिचित्रनि यों पचिकै रचि राखि बिसेख्यौ।
हियो हितपत्र


कवित्त/सवैया : घनानंद (कक्षा-12 पाठ-11 हिंदी अंतरा भाग 2)

KAVITTA/SAVAIYA : Ghananand (Class-12 Chapter-11 Hindi Antra 2)


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