NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)
रामचंद्रचंद्रिका : केशवदास (कक्षा – 12, पाठ – 10, अंतरा भाग – 2)
RAMCHANDRA CHANDRIKA : Keshavdas (Class-12 Chapter-10, Hindi Antra 2)
पाठ के बारे में…
इस पाठ में ‘केशवदास’ के ‘रामचंद्रचंद्रिका’ नामक रचना के तीन छंद प्रस्तुत किए गए हैं।
पहले छंद में देवी सरस्वती की आराधना की गई है और उनकी उदारता तथा वैभव का गुणगान किया गया है।
दूसरे सवैया छंद में कवि ने पंचवटी के महात्म्य का सुंदर वर्णन किया है।
तीसरे छंद में कवि ने रामायण के उस प्रसंग का वर्णन किया है, जिसमें अंगद रावण को समझाते हुए श्रीराम की महिमा का गुणगान करता है और कहता है कि जब राम का वानर हनुमान समुद्र को लाकर लंका में आ सकता है और तुम कुछ नहीं कर पाए तो श्री राम की महिमा को समझो।
कवि के बारे में…
केशवदास हिंदी साहित्य एक प्रसिद्ध कवि रहे हैं, जिन्होंने ब्रजभाषा में अनेक काव्य पदों की रचना की है। वे बुंदेलखंड के निवासी थे और उनकी रचनाओं में ब्रज एवं बुंदेलखंडी भाषा का मिश्रित प्रभाव देखने को मिलता है। इसके साथ ही संस्कृत का भी उनकी रचनाओं पर प्रभाव रहा है।
केशव दास का जन्म बेतवा नदी के किनारे को ओछड़ा में हुआ था, जो बुंदेलखंड क्षेत्र में पड़ता है। वह सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध कवि थे।
उनका जन्म 1555 में तथा मृत्यु 1617 में हुई।
रामचंद्रचंद्रिका : केशवदास
पाठ के हल प्रश्नोत्तर…
प्रश्न 1
देवी सरस्वती की उदारता का गुणगान क्यों नहीं किया जा सकता?
उत्तर :
सरस्वती की उदारता का गुणगान इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि उनकी महिमा को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करना किसी के बस में नहीं है। उनकी महिमा को शब्दों का जामा पहना कर उसे निश्चित दायरे में बांधा नहीं जा सकता।
देवी सरस्वती कला तथा ज्ञान की देवी है। संसार के प्रत्येक प्राणी के गले में निवास करती है। संसार में जो भी ज्ञान है, वह सब उनकी कृपा से ही है।
सदियों से अनेक विद्वानों ने देवी सरस्वती की महिमा का गुणगान करने का प्रयास किया है, लेकिन वह उसमें पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाए हैं। उन्होंने देवी सरस्वती की महिमा का जितना भी गुणगान किया है, उतना ही कम प्रतीत हुआ है। इसी कारण साधारण मनुष्य में इतनी सामर्थ्य नहीं कि वह देवी सरस्वती की उदारता का गुणगान कर सके।
प्रश्न 2
चारमुख, पाँचमुख और षट्मुख किन्हें कहा गया है और उनका देवी सरस्वती से क्या संबंध है?
उत्तर :
कवि ने चार मुख ब्रह्मा के लिए, पाँच मुख भगवान शिव के लिए तथा षट्मुख शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय के लिए प्रयुक्य किया है।
चारमुख, पाँचमुख और छठमुख का देवी सरस्वती से यह संबंध है कि ब्रह्मा को देवी सरस्वती का पति कहा गया है। शिव को उनके पुत्र के समान माना गया है तथा शिव के पुत्र कार्तिकेय को देवी सरस्वती के नाती कहा गया है।
इस तरह चारमुख उनके पति, पाँचमुख उनके पुत्र तथा षट्मुख उनके नाती हैं।
प्रश्न 3
कविता में पंचवटी के किन गुणों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर :
- कवि के अनुसार पंचवटी में दुष्ट लोग एक क्षण भी ठहर नहीं पाते। यहाँ पर दुष्टों के लिए कोई जगह नहीं केवल सज्जन व्यक्तियों के लिए ही जगह है।
- कवि के अनुसार पंचवटी में आकर दुखी लोगों के दुखों का हरण हो जाता है, अर्थात उनके दुख मिट जाते हैं और वह सुख का अनुभव करने लगते हैं।
- कवि के अनुसार पंचवटी इतना सुंदर और मनमोहक है कि यहाँ का वातावरण लोगों के मन को मोह लेता है और अपार सुख प्रदान करता है।
- पंचवटी बेहद पवित्र स्थल है। यहाँ पर आने पर सभी लोगों के पाप और बुरे कर्म कट जाते हैं, और वह बुरे कामों से तौबा कर लेते हैं।
प्रश्न 4
तीसरे छंद में संकेतित कथाएँ अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर :
तीसरे छंद में निम्नलिखित सांकेतिक कथाओं का वर्णन किया गया है…’
सिंधु तर्यो उनका बनरा’ इस पंक्ति के माध्यम से श्री हनुमान द्वारा समुद्र को लांघ का लंका जाने की बात कही गई है। जब सीता माता की खोज करते हुए हनुमान अपने समुद्र के किनारे जा पहुंचे तो अब समुद्र को लांघने की चिंता होने लगी। किसी वानर में इतनी ताकत नहीं थी कि वह समुद्र को लांघ सके। तब जामवंत ने हनुमान जी के बल को जगाया और उनसे प्रेरणा पाकर हनुमान जी ने समुद्र लांघ लिया और लंका पहुंच गए। यहाँ पर मंदोदरी वही बात कहती है।
‘धनुरेख गई न तरी’ इस पंक्ति के माध्यम से यह बात सीताहरण के प्रसंग का वर्णन किया गया है। स्वर्ण मयूर को पाने की आकांक्षा में जब सीता माता ने श्रीराम को लाने के लिए भेज दिया तथा लक्ष्मण को भी उनके पीछे भेजा, तब उनकी अनुपस्थिति में रावण ने मौका पाकर सीता माता का हरण करना चाहा और जब वह लक्ष्मण रेखा के कारण अपने प्रयास में असफल होने लगा, तब उसने धर्म तथा परंपराओं का हवाला देकर उन्हें लक्ष्मण रेखा के उस पार बुलाकर छल से उनका हरण कर लिया।
‘बाँधोई बाँधत सो न बन्यो’ इस पंक्ति के माध्यम से हनुमानजी के लंका में प्रवेश कर उत्पात मचाने के प्रश्न का वर्णन किया गया है और बड़े-बड़े बलशाली राक्षस हनुमान जी का कुछ नहीं कर पाए। रावण का पुत्र अक्षय हनुमान जी के हाथों मारा गया।
‘उन बारिधि बाँधिकै बाट करी’ इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने श्रीराम और उनकी सेना के द्वारा समुद्र के ऊपर पुल बनाकर लंका तक पहुंच जाने की बात की गई है। रावण को लगता था कि कोई भी समुद्र को लाकर उसकी लंका तक नहीं आ सकता। लेकिन श्रीराम ने यह असंभव कार्य को संभव करके दिखाया।
‘तेलनि तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराइ-जरी इस पंक्ति के माध्यम से हनुमान जी द्वारा लंका में उत्पात मचाने की घटना का वर्णन किया गया है। जब माता सीता की खोज में हनुमान जी लंका पहुंच गए और अशोक वाटिका में उनसे भेंट करने के बाद जब लंका में उनके आने का पता चल गया और तब रावण ने हनुमान जी को पकड़कर सजा के तौर पर उनकी पूंछ में आग लगा दी। लेकिन हनुमान जी ने उस जलती पूंछ के सहारे ही पूरी लंका को स्वाहा कर दिया और रावण कुछ नहीं कर सका।
प्रश्न 5
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(क) पति बर्नै चारमुख पूत बर्नै पंच मुख नाती बर्नै षटमुख तदपि नई-नई।
(ख) चहुँ ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी वन पंचवटी।
(ग) सिंधु तर यो उनको बनरा तुम पै धनुरेख गई न तरी।
(घ) तेलन तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराई-जरी।
उत्तर :
चारों पंक्तियों का काव्य सौंदर्य इस प्रकार होगा…
(क) पति बर्नै चारमुख पूत बर्नै पंच मुख नाती बर्नै षटमुख तदपि नई-नई।
काव्य सौदर्य : इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने देवी सरस्वती की महिमा का गुणगान करने में स्वयं को असमर्थ पाया है। वह देवी सरस्वती की महिमा के बारे में कहता है कि उनकी महिमा को शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता। काव्य में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। ‘नई-नई’ शब्द युग्म में ‘पुनरुक्ति प्रकाश’ अलंकार प्रकट हो रहा है। कवि ने इसमें अतिशयोक्ति अलंकार का भी प्रयोग किया है क्योंकि उन्होंने देवी सरस्वती की महिमा का बड़ा चढ़ाकर का वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त पाँचमुख, षटमुख तथा ‘तदपि’ जैसे तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है।
(ख) चहुँ ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी वन पंचवटी।
काव्य सौदर्य : इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने पंचवटी के प्राकृतिक और दैविक सौंदर्य का वर्णन किया है। कवि ने पंचवटी की तुलना भगवान शिव से की है। काव्य में ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है। पंक्ति में गेयता का गुण विद्यमान है।
‘मुक्तनटी’ में रूपक अलंकार प्रकट हो रहा है।
(ग) सिंधु तर यो उनको बनरा तुम पै धनुरेख गई न तरी।
काव्य सौदर्य : इस पंक्ति में मंदोदरी रावण पर व्यंग कस रही है और कह रही है कि जिस राम के अनुचर वानर हनुमान ने विशाल सागर को लांघकर लंका में इतना उत्पात मचा दिया। जिनके भाई की खींची लक्ष्मण रेखा तुम पार नहीं कर सके, वह राम सच में कितने अधिक बलशाली होंगे, सोच लो।
काव्य में ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है। काव्य में गेयता का गुण विद्यमान है और व्यंजना का प्रयोग किया गया है।
(घ) तेलन तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराई-जरी।
काव्य सौदर्य : इस पंक्ति के माध्यम से रावण को हनुमान की शक्ति के बारे में बता रही है।
कवि ने काव्य में ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। काव्य में गेयता का गुण विद्यमान है। काव्य में ‘तेलन तूरनि’ और ‘जराई-जरी’ में ‘अनुप्रास अलंकार’ प्रकट हो रहा है। ‘जरी’ शब्द में ‘यमक अलंकार’ है, क्योंकि इसके दो अर्थ प्रकट हो रहे हैं।
प्रश्न 6
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए।
(क) भावी भूत बर्तमान जगत बखानत है ‘केसोदास’ क्यों हू ना बखानी काहू पै गई।
(ख) अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरूजान-गटी।
उत्तर :
निम्नलिखित का आशय इस प्रकार होगा…
(क) भावी भूत बर्तमान जगत बखानत है ‘केसोदास’ क्यों हू ना बखानी काहू पै गई।
आशय : इस पंक्ति का आशय यह है कि देवी सरस्वती की महिमा इस संसार में अद्वितीय है। उनकी महिमा का गुणगान शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता। कवि के लिए भी उनकी महिमा का गुणगान करना संभव नहीं है। कवि कहते हैं की देवी सरस्वती की महिमा अपरंपार है कि ना तो पहले उनकी महिमा का गुणगान शब्दों के माध्यम से किया जा सकता था और ना ही आज संभव है। उनके स्वभाव में निरंतर नवीनता विद्यमान रहती है। देवी सरस्वती के महात्म्य से लोग चमत्कृत हो जाते हैं और जो उनकी बुद्धि के बस में नहीं है, वे उनकी महिमा को शब्दों में समेट सकें।
(ख) अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरूजान-गटी।
आशय : इस पंक्ति के माध्यम से पंचवटी के सौंदर्य और कविता का वर्णन किया गया है। पंचवटी के दर्शन मात्र से ही लोगों के संकट दूर हो जाते हैं। पाप मिट जाते हैं। दुखों का हरण हो जाता है। लोगों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। पंचवटी एक ऐसा ही परम पवित्र स्थल है कि उन पर प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास के काफी दिन बिताए थे।
(योग्यता विस्तार)
प्रश्न 1
केशवदास की ‘रामचंद्रचंद्रिका’ से यमक अलंकार के कुछ अन्य उदाहरणों का संकलन कीजिए।
उत्तर :
केशवदास कि रामचंद्रचंद्रिका के छंदों में यमक अलंकार के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं.
तेलनि तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराइ-जरी।
इस पंक्ति में ‘यमक अलंकार’ है। ‘जरी-जरी’ का तीन बार प्रयोग किया गया है और हर बार अलग अर्थ निकल हो रहा है। पहले जरी शब्द का अर्थ जलना है, दूसरी जरी का अर्थ थोड़ा सा है, जबकि तीसरी जरी का अर्थ जड़ी हुई है।
इस तरह कवि नें यहाँ ‘यमक अलंकार’ की छटा बिखेरी गयी है।
चहुँ ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी जटी पंचबटी।।
इस पंक्ति में ‘यमक अलंकार’ है। जटी शब्द का दो बार अलग-अलग अर्थ में प्रयुक्त किया गया है। पहली जटी का अर्थ जलना और दूसरी जटी का अर्थ थोडा सा है।
प्रश्न 2
पाठ में आए छंदों का गायन कर कक्षा में सुनाइए।
उत्तर :
यह एक प्रायोगिक विधि है। विद्यार्थी अपनी कक्षा में उन छंदों को गाकर सुनाएं जो पाठ में दिए गए हैं।
प्रश्न 3
केशवदास का काव्य ‘कठिन काव्य का प्रेत हैं’ इस विषय पर वाद-विवाद कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी इस विषय को आधार बनाकर अपनी कक्षा में अलग-अलग समूह बनाकर वाद विवाद कर सकते हैं।
रामचंद्रचंद्रिका : केशवदास (कक्षा-12 पाठ-10 हिंदी अंतरा भाग 2)
Ramchandra Chandrika : Keshavdas (Class-12 Chapter-10 Hindi Antra 2)
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कक्षा-12 (हिंदी)
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