NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)
भरत-राम का प्रेम/पद : तुलसीदास (कक्षा – 12, पाठ – 7, अंतरा भाग – 2)
BHARAT-RAM KA PREM : Tulsidas (Class-12 Chapter-7 Hindi Antra 2)
पाठ के बारे में…
इस पाठ में दिए गए चौपाई एवं दोहे तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के अयोध्याकांड से लिए गए हैं। इन पदों के माध्यम से तुलसीदास ने प्रभु श्रीराम के वन के जाने के बाद भरत की जो मनोदशा हो गई थी, उसका वर्णन किया है।
भरत और राम में अत्याधिक प्रेम था और दोनों बचपन से ही साथ खेलते हुए बढ़े हुए थे। वे हमेशा एक दूसरे का सहयोग करते थे। अत्यधिक प्रेमभाव वाले भाइयों का इस तरह बिछड़ना, भरत की माता कैकेई के हठीले स्वभाव के कारण ही हुआ था। राम के वन के जाने के बाद भरत सहित अन्य माताएं और अयोध्य के सभी नगरवासी अत्यंत दुखी हैं। इस मनोस्थिति का वर्णन तुलसीदास ने भरत-राम का प्रेम छंदों के माध्यम से किया है।
इसी पाठ में तुलसीदास की गीतावली के दो पद भी प्रस्तुत किए गए हैं, जिनमें पहले पद में राम के वन के जाने के बाद माता कौशल्या के हृदय की वेदना का वर्णन किया गया है। जिसमें वह राम की वस्तुओं को देखकर ही बीते हुए दिनों का स्नान करती रहती हैं।
दूसरे पद में माता कौशल्या राम के जाने के बाद उनके वियोग में दुखी उनके घोड़ों के दुख को देखकर राम के अयोध्या लौट आने का निवेदन कर रही है।
कवि के बारे में…
तुलसीदास को हिंदी भाषा का सूरज कहा जाता है, जिन्होंने रामचरित जैसे अनमोल ग्रंथ की रचना की। तुलसीदास भक्तिकालीन धारा की रामाश्रयी शाखा के सबसे अग्रणी कवि थे।
उनके जन्म के विषय में कई वाद विवाद है, कहीं उनका जन्म बांदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ माना जाता है, तो कहीं उनका जन्म उत्तर प्रदेश के एटा जिले के सोरों नामक स्थान पर माना जाता है।
उनका जन्म 1532 ईस्वी में हुआ था। बचपन संघर्ष भरा बीतने के बाद जब उनका विवाह हो गया और तो वह दिनरात अपनी पत्नी रत्नावली के सौंदर्य में ही मग्न रहते थे। एक तब पत्नी ने उनको उलाहना दिया कि मेरे इस हाड़-माँस के शरीर से लगाव की अपेक्षा इतना ही लगाव यदि प्रभु से किया होता तो आज तुम्हे मोक्ष मिल चुका होता। पत्नी के उलाहनों का उन पर इतना असर हुआ कि उन्होंने उसके बाद प्रभु श्रीराम की भक्ति का मार्ग पकड़ लिया।
वह घरबार को त्याग कर वाराणसी में बस गए। जहाँ पर अपना पूरा जीवन श्रीराम की भक्ति करने में व्यतीत किया और वहीं पर अनेक ग्रंथों की रचना की। उनके द्वारा रचित किया गया सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ रामचरितमानस है, जो कि श्रीराम के जीवन चरित पर आधारित है और संस्कृत के मूल ग्रंथ रामायण का सरल भाषा में रूपांतण है।
इसके अलावा उन्होंने कवितावली, गीतावली, श्रीकृष्ण गीतावली, विनय पत्रिका, रामाज्ञा प्रश्न एवं दोहावली जैसे अनेक ग्रंथों की रचना की। उनका निधन सन 1623 ईसवी में हुआ।
भरत-राम का प्रेम/पद : तुलसीदास
पाठ के हल प्रश्नोत्तर…
(भरत-राम का प्रेम)
प्रश्न 1
‘हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ भरत के इस कथन का क्या आशय है?
उत्तर :
हारेंहु खेल जितावहिं मोही’ इस पंक्ति के माध्यम से तुलसीदास श्रीराम के उज्जवल चरित्र के सकारात्मक पक्ष को उजागर कर रहे हैं। इस पंक्ति में भरत यह कहते हैं कि श्रीराम अपने छोटे भाईयों के साथ खेलते समय जानबूझकर भरत से हार जाते हैं ताकि उनके छोटे भाई भरत जीत जाएं और प्रसन्न हों।
श्रीराम अपने सभी छोटे भाइयों के प्रति बेहद दयालु और स्नेही प्रवृत्ति वाले थे। वह अपने छोटे भाइयों का बहुत ध्यान रखते हैं, इसलिए खेल-खेल में जानबूझकर अपने छोटे भाई विशेषकर भारत से हार जाते हैं ताकि अपनी जीत पर भरत खुश हो जायें और उन्हें हारने का कष्ट ना हो। इस तरह वह उत्साह पूर्वक खेलते रहें।
श्रीराम से खेल-खेल में इसी प्रकार सदैव भरत की ही जीत होती है। भरत को इस बात का पता चलने पर वह अपने भाई के प्रति कृतज्ञ होकर श्रद्धायुक्त होकर उनकी प्रशंसा करते हैं।
प्रश्न 2
‘मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ’ में राम के स्वभाव की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर :
प्रश्न 3
राम के प्रति अपने श्रद्धाभाव को भरत किस प्रकार प्रकट करते हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
राम के प्रति भरत का बेहद स्नेह एवं श्रद्धाभाव है। वह अपने बड़े भाई श्रीराम को भगवान की तरह पूजते हैं। वह स्वयं को श्रीराम का अनुचर मानते हैं। अपने बड़े भाई श्रीराम के प्रति हुए अप्रत्याशित घटनाक्रम से बेहद दुखी हैं। अपने बड़े भाई के वन जाने पर उन्हें बेहद दुख होता है और वह अपने बड़े भाई श्री राम को वापस वन से बुलाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं।
जब वन में अपने भाई से मिलने जाते हैं तो उनके सामने आकर वह खुशी से फूले नहीं समाते। अपने बड़े भाई को देखकर उनकी आँखों से श्रद्धा भाव से आँसू निकलने लगते हैं। वह अपने बड़े भाई को सिर्फ भाई ही नहीं मानते बल्कि अपना आराध्य भी मानते हैं। वह बचपन में घटी घटनाओं का उल्लेख भी करते हैं, जिसमें बड़े भाई उनके प्रति उनका कितना ध्यान रखते थे।
इस तरह वह अलग-अलग प्रसंगों द्वारा अपने भाई के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करते हैं। उन्हें आशा है कि अपने बड़े भ्राता के दर्शन करने के बाद सब कुछ अच्छा हो जाएगा। यह सारी बातें भरत कीअपने बड़े भाई राम के प्रति अपार श्रद्धा प्रकट करती हैं।
प्रश्न 4
‘महीं सकल अनरथ कर मूला’ पंक्ति द्वारा भरत के विचारों-भावों का स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर :
‘महीं सकल अनरथ कर मूला’ इस पंक्ति द्वारा भरत अपना पक्ष रख रहे हैं और अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत कर रहे हैं।
भरत के अनुसार उनके पिता, माता, भाई, राज्य और उनसे संबंधित जो भी घटनाक्रम घटा, जो भी अनर्थ हुआ, उसका कारण वह ही हैं। सभी घटनाओं के मूल में वे ही है, उनके कारण ही इस प्रकार की सारी घटनाएं घटी। इसी कारण वह स्वयं को दोषी मान रहे हैं।
भरत का मानना है कि यदि वह नहीं होते तो उनकी माता के के उनके मोह में आकर उनके पिता दशरथ से उनके बड़े भाई श्री राम के लिए 14 वर्ष का वनवास की नहीं मांगती ताकि उनका पुत्र भरत अयोध्या के सिंहासन पर बैठ सके।
यह सब उनकी माता कैकई का उनके प्रति पुत्र मोह के कारण हुआ, इसीलिए वह सारी घटना का मूल दोषी स्वयं को मानकर दुखी हो रहे हैं। उनके मन में अपनी माता आदि के लिए किसी तरह की दुर्भावना नहीं है। सारी घटनाओं के लिए स्वयं को दोषी मानकर एक तरह से उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से अपनी माता कैकई को क्षमा कर दिया है।
प्रश्न 5
‘फरइ कि कोदव बालि सुसाली। मुकुता प्रसव कि संबुक काली’। पंक्ति में छिपे भाव और शिल्प सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव सौंदर्य : भरत कहते हैं कि यदि मैं सारे घटनाक्रम के लिए अपनी माँ पर कलंक लगाऊं और स्वयं को साधु-सज्जन बताकर प्रस्तुत करूँ तो यह संभव नहीं होगा, क्योंकि संसार में मैं कैकेई का पुत्र ही माना जाऊंगा। जिस प्रकार मोटे चावल की बाली में उत्तम कोटि के चावल नहीं लगते। तालाब में जो काले घोंघे पाए जाते हैं, उनसे मोती पानी की आशा करना व्यर्थ है, उसी प्रकार यदि मैं अपने दोषों को छुपाकर सारा दोस्त अपनी माँ के ऊपर मढ़ दूं और स्वयं को साधु सज्जन बताऊं तुझे ना चो उचित है और ना ही संभव होगा। यहाँ पर इस पंक्ति के माध्यम से भरत अपने परिवार में हो रहे सारे घटनाक्रम का दोषी स्वयं को मानते हैं |
शिल्प सौंदर्य : तुलसीदास ने ये पद अवधी भाषा में रचित किए हैं। पदों के पद चौपाई छंद है। भाषा का प्रवाह बना हुआ है तथा गेय शैली में है |
(पद)
प्रश्न 1
राम के वन-गमन के बाद उनकी वस्तुओं को देखकर माँ कौशल्या कैसा अनुभव करती हैं? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
राम के वन गमन के बाद उनकी माता कौशल्या श्रीराम की वस्तुओं को देखकर भावुक हो उठती हैं। पुत्र की याद में भाव विभोर होकर उनकी आँखें आंसुओं से भर उठती हैं। उन्हें पूरे राजभवन में अपने पुत्र राम ही राम दिखाई देते हैं, और उनकी आँखें हर स्थान पर राम को देखने रखती हैं। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चलता है कि राम तो वन को चले गए हैं तब वह वह दुखी हो जाती हैं और उनका ह्रदय व्याकुल हो जाता है।
वह चकित होकर स्तब्ध होकर राम के चित्र के सामने खड़ी रहती हैं। वह राम से जुड़ी हर वस्तु को स्पर्श करती हैं, उनको अपने नेत्रों से लगाती हैं। ़
अपने पुत्र के मोह में वह इतनी व्याकुल हो उठे हैं कि उन्हें अपने स्वयं की हालत की भी कोई कोई सुध नहीं रहती। उन्हें जब यह आभास होता है कि वन के कठोर जीवन में उनके पुत्र कैसे कष्ट सह रहे होंगे तो उनका हृदय और अधिक दुखी हो जाता है।
प्रश्न 2
‘रहि चकि चित्रलिखी सी’ पंक्ति का मर्म अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘रहि चकि चित्रलिखी सी’ इस पंक्ति के माध्यम से एक माँ के हृदय की व्यथा को व्यक्त किया गया है। कौशल्या के पुत्र श्रीराम वन को चले गए हैं और अपने पुत्र से वियोग के कारण माता कौशल्या की अवस्था बेहद दुखी हृदय वाली है। वह अपने पुत्र के वन जाने से व्याकुल और दुखी हैं।
उनकी स्थिति बिल्कुल उसी तरह हो गयी है, जैसे किसी चित्र में कोई स्त्री स्थिर होती है। यानि वह अपने पुत्र राम के वियोग में स्तब्ध होकर बिल्कुल स्थिर हो गयी हैं, और जरा भी हिलती डुलती नही हैं।
राम के वन जाने के बाद वह उनकी वस्तुओं से ही अपने मन को बहलाने का प्रयत्न करते हैं। वह राम से जुड़ी वस्तुओं के माध्यम से पिछली स्मृतियों में डूब कर अपने मन को दिलासा देने का प्रयत्न कर रही हैं, लेकिन इससे भी उनके मन को शांति प्राप्त नहीं हो रही। यह सोचकर उनका ह्रदय और अधिक दुखी हो रहा है कि उनके पुत्र राम वन में कैसे कष्ट हो झेल रहे होंगे।
प्रश्न 3
गीतावली से संकलित पद ‘राघौ एक बार फिरि आवौ’ मैं निहित करुणा और संदेश को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘राघौ एक बार फिरि आवौ’ इस पंक्ति में माता कौशल्या का अपने पुत्र राम के प्रति वियोग और दुख प्रकट हो रहा है। उनके पुत्र राम वन को चले गए हैं और इसी कारण माता कौशल्या बेहद दुखी हैं। वह राम से वापस वन से लौट आने के लिए प्रार्थना कर रही है। वह राम से यह निवेदन कर रही है कि वह वापस वन से लौट आएं। वह यह निवेदन केवल अपने लिए ही नहीं कर रही हैं बल्कि राम के घोड़े के लिए कर रही हैं, क्योंकि राम का घोड़ा राम के वन जाने के बाद से बहुत दुखी है। यद्यपि भरत आदि घोड़े की देखभाल अच्छी तरह से कर रही हैं, लेकिन वह घोड़ा फिर भी दिन-ब-दिन कमजोर होता जा रहा है, क्योंकि वह भी राम के वियोग में दुखी है।
घोड़े के अपने स्वामी राम के प्रति वियोग को देखकर माता कौशल्या का ह्रदय दुखी हो उठता है और वह अपने पुत्र राम से निवेदन करने लगती हैं कि कि वह उनके लिए ना सही अपने घोड़े के लिए ही वन से वापस आ जाएं।
प्रश्न 4
(क) पाठ में से उपमा अलंकार के दो उदाहरण छाँटिए।
(ख) पाठ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग कहाँ और क्यों किया गया है? उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
(क) पाठ में से उपमा अलंकार के दो उदाहरण इस प्रकार होंगे…
“कबहुँ समुझि वनगमन राम को रही चकि चित्रलिखी सी।”
इस पंक्ति में उपमा अलंकार है, क्योंकि इसमें माता कौशल्या की तुलना चित्र की स्त्री से की गई है।
श्रीराम के वन जाने के बाद माता कौशल्या बिल्कुल उसी प्रकार स्तब्ध और स्थिर हो गई हैं, जैसे किसी चित्र में कोई स्त्री स्थिर होती है। माता कौशल्या हिलडुल नही रही है। उनकी तुलना स्त्री के चित्र से की गई है। उपमा अलंकार में किन्हीं दो वस्तुओं में समानता के भाव से तुलना की जाती है।
’तुलसीदास वह समय कहे तें लागति प्रीति सिखी सी।’ इस पंक्ति में भी उपमा अलंकार है, क्योंकि यहाँ पर ‘सिखी सी’ के माध्यम से उपमा अलंकार प्रकट हो रहा है। इस पंक्ति में माता कौशल्या की दशा मोरनी के समान बताई गई है। मोरनी सावन के महीने में सब कुछ भूलकर नाचती तो है, लेकिन जब उसकी दृष्टि अपने पैरों पर पढ़ती है तो वह रो पड़ती है। उसी प्रकार माता कौशल्या की दशा भी ऐसी ही है। वह अपने पुत्र राम की स्मृति से जुड़े पलों को याद कर अपने दिल को दिलासा तो दे रही हैं, लेकिन जैसे ही उन्हें यह याद आता है कि राम वन में अनेक कष्ट भोग रहे होंगे उनका हृदय दुख से भर उठता है।
(ख) पाठ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग इस प्रकार है…
पाठ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग दूसरे पद में हुआ है।
इस पद की इस पंक्ति में उपेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है…
“तदपि दिनहिं दिन होत झाँवरे मनहुँ कमल हिमसारे।”
इस पंक्ति के माध्यम से राम के उस घोड़े की तुलना ऐसे कमल से की गई है, जो वक्त की मार के कारण मुरझा गये हैं। राम का घोड़ा राम के वन गमन के बाद उनके वियोग में दुखी होता है और उसकी दशा की तुलना कमल के फूल से की गई है। घोड़े की वियोगी दशा बिल्कुल ऐसी ही है, जैसे बर्फ की मार से कमल मुरझा जाते हैं।
कवि ने इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार का सुंदर प्रयोग किया है और उसमेय में ही उपमान की संभावना को प्रकट कर उत्प्रेक्षा अलंकार को आरोपित कर दिया है। इससे राम के घोड़े के दुख का सजीव चित्रण हो उठा है।
प्रश्न 5
पठित पदों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि तुलसीदास का भाषा पर पूरा अधिकार था?
उत्तर :
पठित पदों के आधार पर यदि हम विवेचन करें तो तुलसीदास द्वारा रचित इन पदों पदों का पाठ करने से ही पता चल जाता है कि तुलसीदास का भाषा पर पूर्ण अधिकार था। वह अवधी भाषा, ब्रजभाषा और संस्कृत तीनों भाषाओं के विद्वान थे और उनकी इन्हीं तीनों भाषाओं पर गहरी पकड़ थी। जिस प्रकार उनके पदों में तीनों भाषाओं का मिश्रण मिलता है और जिस तरह से उन्होंने शब्दों का सही संयोजन किया है, उससे पता चलता है कि उनका भाषा पर पूरा अधिकार था।
जहाँ उन्होंने ‘राम भरत का प्रेम’ इन पदों की रचना अवधी भाषा में की है, वहीं उन्होंने दूसरे पद ब्रजभाषा में रचे हैं, लेकिन दोनों ही भाषाओं में रचे गए पदों में कोई भी भाषा की दृष्टि से कोई भी कमी नहीं दिखाई देती। शब्दों का सुंदर संयोजन एवं विन्यास मिलता है। पदों की भाषा भी सरल एवं सहज है। उन्होंने अलंकारों का प्रयोग सुंदर तरीके से किया है। उन्होंने अनुप्रास अलंकार, उपमा अलंकार और
उत्प्रेक्षा अलंकार की छटा अपने पदों में बिखेरी है।
(योग्यता विस्तार)
प्रश्न 1
‘महानता लाभलोभ से मुक्ति तथा समर्पण त्याग से हासिल होता है’ को केंद्र में रखकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर :
हाँ, बिल्कुल सही है। महानता कोई भौतिक वस्तु नहीं है जिसका मापन किया जा सके। मानता एक एहसास है, एक अनुभव है, महानता एक भाव है जो कोई एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के व्यक्तित्व के आकलन के लिए अपने मन में बनाता है।
महानता एक पदवी के समान है जो किसी व्यक्ति को उसके कर्मों के कारण दूसरे व्यक्तियों द्वारा मिलती है।
महानता का सम्मान पाना हर किसी व्यक्ति के बस की बात नहीं होती, वह एक सम्मान है, जो किसी व्यक्ति के गुणों के कारण ही उसे समाज से प्राप्त होता है। जो व्यक्ति अपने व्यक्तिगत लाभ-लोभ के चक्कर में पड़ा रहता है, जिसे केवल अपनी सुख-सुविधा की ही चिंता होती है, वह व्यक्ति महान नहीं बन सकता।
महान बनने के लिए अपने स्वार्थ को त्याग कर परमार्थ का भाव अपनाना पड़ता है। दूसरों के हित के लिए अपने जीवन के सुखों को त्याग करना पड़ता है। सर्व कल्याण की भावना से कार्य करना पड़ता है और कोई भी कठिन परिस्थिति अथवा आसान परिस्थिति हो, हर स्थिति में एक सा भाव अपनाना पड़ता है, तभी व्यक्ति महान बनता है। इसलिए ये सही है कि ‘महानता लाभलोभ से मुक्ति तथा समर्पण त्याग से हासिल होता है।’
प्रश्न 2
भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंगों को जानिए।
उत्तर :
भरत के त्याग और समर्पण के अन्य प्रसंग इस प्रकार हैं :
राम के वन गमन के बाद भरत ने कभी राज सिंहासन पर नहीं बैठने का प्रण किया था। वह राज सिंहासन पर श्रीराम का ही अधिकार मानते थे, इसीलिए उन्होंने वन में राम से भेंट करते समय उनसे उनकी खड़ाऊँ ले ली थी और उन्हीं खड़ाऊँ को उन्होंने राज सिंहासन पर रखकर पूरे 14 वर्ष तक राजकाज चलाया।
राम के वन जाने की घटना का दोषी वह स्वयं को मानते थे, इसीलिए उन्होंने स्वयं को दोषी मानते हुए स्वयं को ही सजा दी और राज महल की सभी सुख-सुविधाओं का त्याग कर दिया। उन्होंने 14 वर्षों तक वनवासियों की तरह राजमहल से दूर झोपड़ी में रहकर जीवन यापन किया। वहीं से वह राजकाज का संचालन करते थे। जब राम वापस अयोध्या लौट आए थे, तब उन्होंने राज महल में प्रवेश किया।
प्रश्न 3
आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा भातृप्रेम क्या संभव है? अपनी राय लिखिए।
उत्तर :
बिल्कुल नहीं, आज के संदर्भ में राम और भरत जैसा व भ्रातृ प्रेम मिलना संभव ही नहीं है। यदा-कदा एकाध मामला ऐसा दिख जाए, नहीं तो आज राम और भरत जैसा प्राप्त प्रेम मिलना संभव नहीं है।
आज तो भाई धन-सम्पत्ति के लिए अपने भाई का गला काटने से नहीं चूकता। पिता की संपत्ति के बंटवारे के लिए भाई-भाई एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। किसी एक भाई के संकट की स्थिति में दूसरा भाई उसको पूछता तक नही। ना ही कोई सहयोग करता है।
आज के रिश्तो का आधार केवल धन हो गया है। दो भाइयों की आर्थिक स्थिति समान अगर समान नहीं है तो दोनों में संबंध भी समान नहीं होंगे।
जहाँ भरत ने अपने भाई के प्रेम की खातिर राजसी वैभव को ठुकरा दिया। राम ने अपने पिता की आज्ञा के खातिर सारी सुख-सुविधाओं का परित्याग कर सहज रूप से वन जाने का निश्चय किया। लक्ष्मण ने अपने बड़े भाई राम का साथ देने के लिए राजसी सुखों का त्याग करते हुए उनके साथ वन में जाने का निश्चय किया, वैसे उदाहरण आज देखने को नहीं मिलेंगे। आज कोई भाई अपने बड़े या छोटे भाई के लिए ऐसा नहीं करेगा।
प्रश्न 4
भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के किस उज्जवल पक्ष की ओर संकेत करता है?
उत्तर :
भरत का आत्म परिताप उनके चरित्र के उज्जवल पक्ष की ओर संकेत करता है कि वह स्वभाव से स्वार्थी और लोभी प्रवृत्ति के नहीं थे। जो भी घटनाक्रम घटा उसमें भले ही उनकी गलती ना हो, लेकिन उसका सारा दोष उन्होंने स्वयं लेकर अपनी माता कैकई पर दोषारोपण नहीं किया। जबकि उनकी माता कैकेई ही इस बात के लिए दोषी थीं।
उनकी माता कैकई ने अपने पुत्र के मोह में आकर राजा राजा दशरथ से श्रीराम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया था ताकि उनका पुत्र भरत अयोध्या का राजा बन सके। उनकी माता के पुत्र मोह के कारण श्रीराम को 14 वर्ष के लिए जाना पड़ा और बड़े पुत्र राम विरह में राजा दशरथ दुखी होकर स्वर्ग सिधार गए। इन सारी बातों के लिए भरत ने स्वयं को दोषी माना। उनके अनुसार यदि वह नहीं होते तो उनकी माँ भी पुत्र मोह में आकर यह सब कार्य नहीं करती। इसीलिए वह सारे घटनाक्रम का दोष अपने ऊपर ले लेते हैं।
यह बात उनके उज्जवल चरित्र की ओर संकेत करती है, कि वह बेहद सज्जन व्यक्ति थे जो दूसरों के दोष को भी अपने ऊपर ले कर अपनी सज्जनता को प्रकट करते हैं।
प्रश्न 5
पाठ के किन्हीं चार स्थानों पर अनुप्रास के स्वाभाविक एवं सहज प्रयोग हुए हैं उन्हें छाँटकर लिखिए?
उत्तर :
(क) कबहुँ प्रथम ज्यों जाइ जगावति कहि प्रिय बचन सवारे।
स्पष्टीकरण : इस पंक्ति में ‘ज’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार यानि कुल तीन बार हुई है, इसलिए इस पंक्ति में ‘अनुप्रास अलंकार’ प्रकट हो रहा है।
(ख) कबहुँ कहति यों “बड़ी बार भइ जाहु भूप पहँ, भैया।
स्पष्टीकरण : इस पंक्ति में ‘क’ एवं ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक यानि कुल दो बार हुई है इसलिए इस पंक्ति में ‘अनुप्रास अलंकार’ प्रकट हो रहा है।
(ग) ए बर बाजि बिलोकि आपने बहुरो बनहिं सिधावौ।
स्पष्टीकरण : इस पंक्ति में ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक यानि कुल पाँच बार हुई है, इसलिए यहाँ पर ‘अनुप्रास अलंकार’ है।
(घ) जे पय प्याइ पोखि कर-पंकज वार वार चुचकारे।
स्पष्टीकरण : इस पंक्ति में ‘प’ तथा ‘व’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हुई है यानि ‘प’ वर्ण की तीन बार और ‘व’ वर्ण की दो बार आवृत्ति हुई है, इसलिए यहाँ ‘अनुप्रास अलंकार’ है।
भरत राम का प्रेम : तुलसीदास (कक्षा-12 पाठ-7 हिंदी अंतरा 2)
BHARAT-RAM KA PREM : Tulsidas (Class-12 Chapter-7 Hindi Antra 2)
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