NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)
वसंत आया/तोड़ो : रघुवीर सहाय (कक्षा-12, पाठ-6, अंतरा भाग 2)
VASANT AAYA/TODO : Raghuveer Sahaya (Class-12 Chapter-6 Hindi Antra 2)
पाठ के बारे में…
इस पाठ में ‘वसंत आया’ और ‘तोड़ो’ ये दो कवितायें ‘रघुवीर सहाय’ ने दो कवितायें प्रस्तुत की हैं।
‘वसंत आया’ कविता में वसंत ऋतु के आगमन और उसके सौंदर्य का वर्णन किया है। कवि को अचानक पता चलता है कि वसंत ऋतु का आगमन हो गया है, जब उसे मौसम मे परिवर्तन होता है। वो अपने घर जाकर इसकी पुष्टि भी कर लेता था।
‘तोड़ो’ कविता के माध्यम से कवि ने एक प्रतीकात्मक कविता प्रस्तुत की है। कवि का कहना है कि सृजन हेतु भूमि को तैयार करने के लिए चट्टानें, ऊस और बंजर को तोड़ना पड़ता है। तभी खेतों में फसल लहराती है। उसी प्रकार अपने अपने मन में नवीन विचारों के सृजन के लिए पुराने और बंजर विचारों को त्यागना और तोड़ना पड़ता है, सभी नवीनता का सृजन होगा।
कवि के बारे में…
रघुवीर सहाय हिंदी साहित्य के एक जाने-माने हस्ताक्षर रहे हैं। जिनका जन्म 1929 में लखनऊ उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर थे।
उनकी प्रमुख काव्य कृतियों में ‘सीढ़ियों पर धूप में’, ‘हंसो-हंसो जल्दी हंसो’, ‘लोग भूल गए हैं’, ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ आदि के नाम प्रमुख हैं। रघुवीर सहाय रचनावली नाम से प्रकाशित हुई छह खंडों के काव्य संग्रह में उनकी सभी रचनाओं को संकलित किया गया है। वह साहित्य पुरस्कार से भी सम्मानित किए जा चुके हैं। सन् 1990 में उनका निधन हो गया था।
वसंत आया/तोड़ो : रघुवीर सहाय
पाठ के हल प्रश्नोत्तर…
(वसंत आया)
प्रश्न 1
वसंत आगमन की सूचना कवि को कैसे मिली?
उत्तर :
वसंत आगमन की सूचना कवि को तब मिली जब वो फुटपाथ पर चल रहा था। तब उसने प्रकृति में आए हुए परिवर्तनों को देखा जब उसे पता चला कि वसंत आ गया है। कवि ने देखा कि चिड़ियों के कूकने की आवाज सुनाई दे रही हैं। पेड़ों से गिरे हुए पीले पत्ते बिखरे पड़े हैं। ठंडी-ठंडी गुनगुनी ताजा हवा चल रही है। प्रकृति में आए यह सुहाने परिवर्तन देखकर कवि को एहसास हुआ कि वसंत ऋतु का आगमन हो गया है, उसके बाद कवि अपने घर पर जाकर कैलेंडर को देखकर अपने इस बात की पूर्ण रूप से पुष्टि भी कर लेता है।
प्रश्न 2
कोई छह बजे सुबह जैसे गर्म पानी से नहाई हो, जैसे गरम पानी से नहाई हो, खिली हुई हवा आई, फिरकी सी आई, फिर चली गई। पंक्ति में भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कोई छह बजे सुबह जैसे गर्म पानी से नहाई हो, जैसे गरम पानी से नहाई हो, खिली हुई हवा आई, फिरकी सी आई, फिर चली गई। इस पंक्ति में निहित भाव यह है कि बसंत ऋतु का जब आगमन होता है, उससे पहले वातावरण में जो हवा विद्यमान होती है, उस हवा में ठंडक होती है। इस ठंडक से मनुष्य सिहर उठता है, लेकिन जैसे ही बसंत ऋतु का आगमन होता है तो वह हवा हल्की सी गर्म यानी गुनगुनी हो जाती है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई युवती गर्म पानी से स्नान करके आई हो।
कवि कहता है कि यह हवा फिरकी की तरह गोल-गोल घूमती है और फिर अचानक रुक जाती है। इस हवा में ठंडापन नहीं होता। इस हवा से कोई से सिहरता नहीं बल्कि यह गर्म हवा ह्रदय को सुकून देती है और ह्रदय में आनंद भर देती है। यही वसंत ऋतु की विशेषता है।
प्रश्न 3
अलंकार बताइए।
(क) बड़े-बड़े पिपराए पत्ते।
(क) कोई छह बजे सुबह जैसे गर्म पानी से नहाई हो।
(ग) खिली हुई हवा आई, फिरकी सी आई चली गई।
(घ) कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
उत्तर :
अलंकार इस प्रकार होंगे…
(क) बड़े-बड़े पिपराए पत्ते।
अलंकार : पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार और अनुप्रास अलंकार
कारण : ‘बड़े-बड़े’ शब्द में बड़े शब्द की लगातार दो बार पुनरावृति हुई है, इसीलिए यहाँ पर ‘पुनरुक्ति प्रकाश’ अलंकार है। ‘बड़े-बड़े पिपराए पत्ते’ इस पंक्ति में ‘ब’ वर्ण और ‘प’ वर्ण की एक से अधिक यानि दो-दो बार आवृत्ति हुई है, इसलिये इस पंक्ति में ‘अनुप्रास अलंकार’ भी प्रकट होता है।
(क) कोई छह बजे सुबह जैसे गर्म पानी से नहाई हो।
अलंकार : मानवीकरण अलंकार
कारण : क्योंकि इस पंक्ति में प्रकृति के एक घटक सुबह को मानव रूप में क्रिया संम्पन्न करते हुए दर्शाया जा रहा है, इसलिये इस पंक्ति में ‘मानवीकरण अलंकार’ प्रकट हो रहा है। मानवीकरण अलंकार वहाँ पर प्रकट होता है, जहाँ पर काव्य में प्रकृति के तत्वों को मानवीय क्रिया करते हुए दिखाया जाये।
(ग) खिली हुई हवा आई, फिरकी सी आई चली गई।
अलंकार : अनुप्रास अलंकार एवं उपमा अलंकार
कारण : इस पंक्ति में ‘अनुप्रास अलंकार’ है, क्योंकि ‘खिली हुई हवा आई’ में ‘ह’ वर्ण की दो बार आवृत्ति हुई है। इस पंक्ति में ‘उपमा अलंकार’ भी प्रकट हो रहा हैस क्योंकि यहाँ पर हवा की तुलना फिरकी से की गई है। उपमा अलंकार में दो तत्वों की आपस में तुलना की जाती है तथा एक तत्व को दूसरे की उपमा दी जाती है।
(घ) कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
अलंकार : पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार एवं अनुप्रास अलंकार
कारण : ‘दहर-दहर’ शब्द में ‘दहर’ शब्द की लगातार दो बार पुनरावृति हुई है, इसीलिए यहाँ पर ‘पुनरुक्ति प्रकाश’ अलंकार है। ‘दहह-दहर दहकेंगे’ इस पंक्ति में ‘द’ वर्ण एक से अधिक यानि तीन बार आवृत्ति हुई है, इसलिये इस पंक्ति में ‘अनुप्रास अलंकार’ भी प्रकट होता है।
प्रश्न 4
किन पंक्तियों से ज्ञात होता है कि आज मनुष्य प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य की अनुभूति से वंचित है?
उत्तर :
निम्नलिखित पंक्तियों से ज्ञात होता है कि आज मनुष्य प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य की अनुभूति से वंचित है…
कल मैंने जाना कि वसंत आया
और यह कैलेंडर से मालूम था
अमुक दिन अमुक वार मदन महीने की होवेगी पंचमी
दफ्तर में छुट्टी थी, यह था प्रमाण
और कविताएं पढ़ते रहने से यह पता था
कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
इन पंक्तियों ज्ञात होता है कि कवि को वसंत के आगमन का पता कैलेंडर से चला था, यानि वह प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य की अनुभूति से वंचित था।
प्रश्न 5
प्रकृति मनुष्य की सहचरी है’ इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आज के संदर्भ में इस कथन की वास्तविकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
प्रकृति मनुष्य की सहचरी होती है, इस बात में जरा भी संदेह नहीं है। प्रकृति और मनुष्य का आपस में गहरा संबंध है। जब से मनुष्य का इस धरती पर अस्तित्व संभव हुआ है, तब से प्रकृति ने निरंतर उसकी सर्जरी के रूप में मनुष्य का साथ निभाया है। बिना प्रकृति के मनुष्य इस पृथ्वी पर अपना जीवन नहीं जी सकता।
प्रकृति ही मनुष्य को इस धरती पर हर तरह की सुविधाएं प्रदान करने में सहयोग देती है। प्रकृति के माध्यम से ही मनुष्य को अपने जीवन आवश्यक वस्तुएं प्राप्त होती हैं। प्रकृति के माध्यम से ही मनुष्य को अपने जीवन के लिए सभी जरूरी साधन प्राप्त होते हैं, चाहे वह हवा हो या पानी हो, अनाज हो, वस्त्र हों, आवास हों। ये सभी प्रकृति के माध्यम से ही मनुष्य को प्राप्त होते हैं।
प्रकृति के निकट रहता ही मनुष्य सभ्य बना है। यह बात अलग है आज का मनुष्य निरंतर प्रकृति से दूर होता जा रहा है। जितना वह प्रकृति से दूर हो रहा है उतना ही वह रोगों से ग्रस्त हो रहा है। उसका स्वास्थ्य खराब होता जा रहा है और उसकी जीवन शैली में बिगड़ती जा रही है। उसकी आयु घटती जा रही है। मनुष्य आधुनिकता की दौड़ में प्रकृति से खिलवाड़ कर रहा है और अपने विनाश को नजदीक ला रहा है। यदि मनुष्य को अस्तित्व को बचाना है तो उसे प्रकृति को सहचरी बनाये रखना होगा।
प्रश्न 6
‘वसंत आया’ कविता में कवि की चिंता क्या है?
उत्तर :
वसंत आया’ कविता में कवि की मुख्य चिंता यह है कि आज के समय में मनुष्य प्रकृति से निरंतर दूर होता जा रहा है। प्राचीन काल से मनुष्य और प्रकृति के बीच में जो संबंध था वो संबंध टूट गया है। मनुष्य आधुनिकता और प्रगति की दौड़ में आधुनिकता और विकास की दौड़ में प्रकृति के साथ निरंतर खिलवाड़ कर रहा है, और प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहा है।
विश्वास ही नहीं होता कि यह वही मनुष्य है जो प्रकृति के सानिध्य में रहकर ही सभ्य बना। प्रकृति से ही उसने सब कुछ प्राप्त किया। आज प्रकृति के नैसर्गिक रूप के दर्शन देखने दुर्लभ हो गए हैं। महानगरों में चारों तरफ ऊँची ऊँची इमारतें ही हैं। गांव में ही देखने को मिल जाते हैं प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रही है, जो प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सामने आता रहता है।
जो प्रकृति मनुष्य की सहचरी थी मनुष्य अपनी उसी को भुला दिया है। इसी कारण प्रगति भी दुखी है। इस कविता से ही स्पष्ट होता है कि कवि को वसंत ऋतु के आगमन का कैलेंडर से पता चला जबकि प्राचीन समय में किसी भी ऋतु आदि के आगमन का मनुष्य को सहज रूप से पता चल ही जाता था। कवि मनुष्य के आसपास प्राकृतिक परिवर्तन मनुष्य को उस तरह से आनंदित नहीं कर पाते,
क्योंकि प्रकृति में हो रहे परिवर्तनों के अनुभव से वह दूर हो गया है।
(तोड़ो)
प्रश्न 1
पत्थर’ और ‘चट्टान’ किसके प्रतीक है?
उत्तर :
रघुवीर सहाय’ द्वारा रचित ‘तोड़ो’ कविता में ‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ बंधन और बाधाओं के प्रतीक हैं। कवि इस कविता में स्पष्ट करते हैं कि पत्थर और चट्टान मनुष्य के जीवन में वे बंधन और बाधाएं हैं, जो उसे आगे बढ़ने से रोकते हैं।
इसीलिए इस प्रतीकात्मक कविता में कवि ने पत्थर और चट्टान रूपी बंधन तथा बाधाओं को हटाने के लिए मनुष्य को प्रेरित किया है। कविता कहना है कि यदि उसे अपने जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, कुछ नवीनतम सृजन करना है, तो उसे इन पत्थर एवं चट्टानों की बाधाओं को तोड़कर अपने रास्ते से हटाना पड़ेगा, तभी वह अपने लक्ष्य को पा सकता है।
प्रश्न 2
भाव स्पष्ट कीजिए। मिट्टी में रस होगा ही, जब वह पोसेगी बीज को, हम उसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को, गोड़ो गोड़ो गोड़ो
उत्तर :
इस पंक्ति का भाव यह है कि मिट्टी में जब तक उपजाऊ होता है, तभी बीज का पोषण होता है और मिट्टी अपनी उपजाऊपन से ही बीज को पोषित करती है। वही बीज आगे बढ़कर पौधा बनता है और फसल के रूप में विकसित होता है। यदि मिट्टी में रस यानी उपजाऊपन नहीं होगा तो वह बीज का पोषण नहीं कर पाएगी और फसल भी नहीं तैयार हो पाएगी।
ऐसे ही हमारे मन की स्थिति होती है। जब तक हमारे मन के अंदर खीझ है, निराशा है, तब तक हमारे अंदर सृजन शक्ति का विकास नहीं होगा। नवीनतम सृजन के लिए आवश्यक है कि हम अपने मन की खीज को बाहर निकाले। अपने मन की निराशा को दूर करें और फिर अपने मन में नवीनतम विचारों का सृजन करें जो हमारे लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक हों।
प्रश्न 3
कविता का आरंभ ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से हुआ है और अंत ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से हुआ। विचार कीजिए कि कवि ने ऐसा क्यों किया?
उत्तर :
कविता का आरंभ तोड़ो तोड़ो तोड़ो से हुआ है और अंत गोड़ो गोड़ो गोड़ो से, ऐसा करने का कवि उद्देश्य यह है कि वह मनुष्य को प्रेरित करना चाहता है कि मनुष्य अपने जीवन में आने वाली विघ्न, बाधाओं, खीझ रूपी चट्टानों को तोड़ने का प्रयास करे। जब मनुष्य अपने जीवन की विघ्न, बाधा, खीझ की चट्टानों को तोड़ देगा, तब ही उसके आगे बढ़ने का रास्ता साफ होगा और उसके मन में सोचने-समझने की शक्ति का भी विकास होगा। मनुष्य के जीवन में आने वाली यह सभी विघ्न, बाधाएं, खीझ आदि ही उसके विचारों को प्रभावित करती हैं और उसे आगे बढ़ने से रोकती है।
कविता का अंत गोड़ो गोड़ो गोड़ो से हुआ है, इन शब्दों के माध्यम से कवि मनुष्य को अपना मन मजबूत बनाने के लिए और सृजन शक्ति विकसित करने के लिए प्रेरित कर रहा है। कवि मनुष्य से कहना चाह रहा है कि जब उसने अपने अंदर व्याप्त विघ्न, बाधा, खीझ की चट्टानों को तोड़ ही दिया है तो अब उसे अपने अंदर नवीनतम विचारों का सृजन करना चाहिए। अपने मन को उपयोगी विचारों से भरना चाहिए, जो उसके लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक हो और उसे आगे बढ़ने में मदद करें। मनुष्य अपनी सृजन शक्ति को विकसित करे।
प्रश्न 4
यह झूठे बंधन टूटें, तो धरती को हम जानें। यहाँ पर झूठे बंधनों और धरती को जानने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
कविता की इन पंक्तियों में झूठे बंधन से कवि का अभिप्राय यह है कि मनुष्य के जीवन में जो विघ्न बाधा निराशा रूपी बातें उत्पन्न होती हैं, वे उसे लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग से विचलित करती हैं। यह विघ्न बाधा ही उसे आगे बढ़ने से रोकती हैं और उसके मन को पत्थर एवं चट्टानों की तरह बंजर बना देती है। यदि मनुष्य अपने मन में व्याप्त इन झूठे बंधनों यानी इन विघ्न रूपी, बाधा रूपी, निराशा रूपी बंधनों से मुक्ति पा लें उन चट्टानों की तरह तोड़ दे और अपने अंदर सृजन शक्ति को विकसित करें तो वह आगे बढ़ सकता है।
धरती को जानने से कवि का अभिप्राय यह है कि धरती में उपजाऊ शक्ति होती है, जिसके माध्यम से है बीज को पोषति करके अन्न उत्पन्न करती है और संसार का भरण पोषण करती है। परंतु धरती के अंदर की पत्थर और चट्टानें उसे बंजर बना देती है। तब बंजर भूमि के पत्थर और चट्टानों को तोड़कर उपजाऊ बनाने की आवश्यकता पड़ती है।
उसी प्रकार मनुष्य का मन है। वह अपने अंदर की बंजर विचारों रूपी विघ्न बाधाओं रूपी पत्थर और चट्टानों को तोड़ दे तो उसके अंदर सृजन शक्ति का विकास होगा और वह अपनी शक्ति को पहचान कर आगे बढ़ सकेगा।
प्रश्न 5
‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि मनुष्य के मन के अंदर जब तक खीझ व्याप्त है. निराशा व्याप्त है, तब तक उसके अंदर सृजन शक्ति का विकास नहीं हो सकता। उसका गान अधूरा ही रहेगा, यदि मनुष्य अपने मन में व्याप्त खीझ तथा ऊब को बाहर निकाल दे, तो उसका गान पूरा होगा।
मनुष्य का मन आनंद से भरा होगा, खुशी से भरा होगा तभी वो पूरा गाना गा सकता है, नहीं तो उसका गाना अधूरा ही है। कवि इस बात को कह कर उसे प्रेरित कर रहा है कि मनुष्य अपने अंदर की निराशा को निकाल फेंके। तब उसका मन सृजन करने में सक्षम होगा, तभी मनुष्य का कल्याण हो सकता है।
(योग्यता विस्तार)
प्रश्न 1
वसंत ऋतु पर किन्हीं दो कवियों की कविताएं खोजिए और इस कविता से उनका मिलान कीजिए?
उत्तर :
छात्र अपनी गतिविधि के आधार पर ऐसे तो कभी कवियों की कविताएं खोजें और कविता से उनका मिलान करें।
छात्रों की सुविधा के लिए दो कवियों की कविताएं प्रस्तुत हैं…
माखलाल चतुर्वेदी की ‘वसंत मनमाना’ कविता…
चादर-सी ओढ़ कर ये छायाएँ
तुम कहाँ चले यात्री, पथ तो है बाएँ।
धूल पड़ गई है पत्तों पर डालों लटकी किरणें
छोटे-छोटे पौधों को चर रहे बाग में हिरणें,
दोनों हाथ बुढ़ापे के थर-थर काँपे सब ओर
किन्तु आँसुओं का होता है कितना पागल ज़ोर-
बढ़ आते हैं, चढ़ आते हैं, गड़े हुए हों जैसे
उनसे बातें कर पाता हूँ कि मैं कुछ जैसे-तैसे।
पर्वत की घाटी के पीछे लुका-छिपी का खेल
खेल रही है वायु शीश पर सारी दनिया झेल।
छोटे-छोटे खरगोशों से उठा-उठा सिर बादल
किसको पल-पल झांक रहे हैं आसमान के पागल?
ये कि पवन पर, पवन कि इन पर, फेंक नज़र की डोरी
खींच रहे हैं किसका मन ये दोनों चोरी-चोरी?
फैल गया है पर्वत-शिखरों तक बसन्त मनमाना,
पत्ती, कली, फूल, डालों में दीख रहा मस्ताना।
सुमित्रानन्दन पंत ‘वसंत आया’ कविता…
सखि, वसन्त आया
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया।
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय उर-तरु-पतिका
मधुप-वृन्द बन्दी-
पिक-स्वर नभ सरसाया।
लता-मुकुल हार गन्ध-भार भर
बही पवन बन्द मन्द मन्दतर,
जागी नयनों में वन-
यौवन की माया।
अवृत सरसी-उर-सरसिज उठे;
केशर के केश कली के छुटे,
स्वर्ण-शस्य-अंचल
पृथ्वी का लहराया।
छात्र इन कविताओं से पाठ में दी गई कविता का मिलान करें। छात्र चाहें तो अन्य कवियों की कविताएं भी खोजकर उनसे पाठ में दी गई कविता का मिलान कर सकते हैं।
प्रश्न 2
भारत में ऋतु का चक्र बताइए और उनके लक्षण लिखिए।
उत्तर :
भारत को ऋतुओं का देश कहा जाता है। भारत में कुल छः ऋतुएं पाई जाती हैं। ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, हेमंत ऋतु, शिशिर ऋतु एवं वसंत ऋतु।
पूरे वर्ष में सभी ऋतुओं का समय काल दो 2 महीने का होता है।
भारतीय कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ एवं वैशाख मास में ग्रीष्म ऋतु होती है। वर्षा ऋतु आषाढ़ एवं श्रावण मास में आती है। शरद ऋतु भाद्रपद एवं अश्विन मास में आती है। हेमंत ऋतु कार्तिक एव अगहन मास में आती है। शिशिर ऋतु पूस एवं माघ मास में आती है। वसंत ऋतु फागुन एवं चैत्र मास में आती है।
हर ऋतु की अपनी विशेषता है, लेकिन बसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा कहा जाता है। वसंत ऋतु एक ऐसी ऋतु होती है, जिसमें चारों तरफ मनमोहक वातावरण होता है। ना ही अधिक गर्मी होती है और ना ही अधिक सर्दी।
गेग्रेरियन कैलेंडर के अनुसार वसंत ऋतु मार्च-अप्रैल में, वर्षा ऋतु मई-जून में, शरद ऋतु सितंबर-अक्टूबर में, हेमंत ऋतु नवंबर-दिसंबर में तथा शिशिर ऋतु जनवरी-फरवरी में आती है।
प्रश्न 3
मिट्टी और बीज से संबंधित और भी कविताएं जैसे सुमित्रानंदन पंत की ‘बीज’ । अन्य कवियों की कविताओं का संकलन कीजिए और भित्ति पत्रिका में उनका उपयोग कीजिए।
उत्तर :
ये एक प्रायोगिक गतिविधि का कार्य है। छात्र अपने प्रायोगिक कार्य के तौर पर इस गतिविधि को प्रश्न में दिए गए निर्देशानुसार करें।
वसंत आया/तोड़ो : रघुवीर सहाय (कक्षा-12 पाठ-6 हिंदी अंतरा 2)
VASANAT AAYA/TODO : RAGHUVEER SAHAYA (Class-12 Chapter-6 Hindi Antra 2)
ये पाठ भी देखें
कक्षा-12 (हिंदी)
- एक कम/सत्य : विष्णु खरे (कक्षा-12 पाठ-5 हिंदी अंतरा भाग 2)
- बनारस/दिशा : केदारनाथ सिंह (कक्षा-12 पाठ-4 हिंदी अंतरा भाग 2)
- ये दीप अकेला/मैंने देखा एक बूंद : सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ (कक्षा-12 पाठ-3 हिंदी अंतरा भाग 2)
- गीत गाने दो मुझे/सरोज स्मृति : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (कक्षा-12 पाठ-2 हिंदी अंतरा भाग 2)
- देवसेना का गीत/कार्नेलिया का गीत : जयशंकर प्रसाद (कक्षा-12 पाठ-1 हिंदी अंतरा भाग 2)
कक्षा-10 (हिंदी)
- तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श 2)
- मधुर मधुर मेरे दीपक जल : महादेवी वर्मा (कक्षा-10 पाठ-6 हिंदी स्पर्श 2)
- पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2)
- मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2)
- दोहे : बिहारी (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श 2)
- पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2)
- साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2)
ये भी जानें
- ‘त्रिवेणी’ किस विधा की रचना है?
- नारी शक्ति पर संवाद लिखें (पाँच लड़कियों के बीच)।
- नाखूनों की सुंदरता बढ़ाने के लिए नेल पॉलिश का विज्ञापन तैयार कीजिए।
- ‘पथ के साथी’ किस विधा पर आधारित रचना है?