एक कम/सत्य : विष्णु खरे (कक्षा-12 पाठ-5 हिंदी अंतरा भाग 2)

NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

एक कम/सत्य : विष्णु खरे (कक्षा-12, पाठ-5, अंतरा भाग 2)

EK KAM/SATYA : Vishnu Khare (Class-12 Chapter-5 Hindi Antra 2)


पाठ के बारे में…

पाठ में ‘एक कम’ कविता के माध्यम से कवि ने भारत देश की आजादी के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों का वर्णन किया है। कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि भारत की आजादी के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने जैसा सोचा था, आजादी मिलने के बाद वैसा नहीं हुआ। देश में ईमानदारों की जगह बेईमान लोगों का प्रभाव हो गया। लोगों में आपसी भाईचारे की भावना खत्म हो गई और उसका स्थान धोखाधड़ी तथा आपसी खींचतान ने ले लिया। लोग अपने स्वार्थ में लिप्त होते गए।

‘सत्य’ कविता के माध्यम से लेखक ने कवि ने महाभारत के पौराणिक संदर्भों और पात्रों के द्वारा जीवन की सत्यता को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए महाभारतकालीन पौराणिक अतीत का सहारा लिया है।

‘विष्णु खरे’ हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि थे। जिनका जन्म मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में सन 1940 को हुआ था। उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं में संपादन कार्य कार्य किया। इसके अलावा उन्होंने कविताएं, आलोचना आदि जैसी विधाओं में अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। उनकी उनका निधन 2018 में हुआ था।

कवि के बारे में…

विष्णु खरे, जो हिंदी के प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक आदि रहे थे, उनका जन्म मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा शहर में 1940 में हुआ था। उन्होंने इंदौर से अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. करने के बाद इंदौर समाचार पत्र से अपना पत्रकारिता करियर आरंभ किया। जहाँ वे उप संपादक रहे। वे अलग-अलग पत्र-पत्रिकाओं के संपादन कार्यों से जुड़े रहे हैं। वह नवभारत टाइम्स के प्रभारी कार्यकारी संपादक भी रहे। उन्होंने लेखक के तौर पर अपना लेखन कार्य सन 1956 में आरंभ किया।

उन्होंने अपने पहले काव्य संग्रह के रूप में टी एस इलियट की कविताओं का हिंदी में अनुवाद किया। उनका दूसरा कविता संग्रह एक रूमानी समय में 1970 में प्रकाशित हुआ। इसके अलावा उनके चार और काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। जिनके नाम हैं, एक गैर रूमानी समय में, खुद अपनी आँख से, सबकी आवाज के परदे में, पिछला बाकी तथा काल और अवधि हैंं। आलोचना की पहली किताब इनकी समीक्षा पुस्तक है। इन्होंने अनेक विदेशी कविताओं का हिंदी-अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है। उन्हें हिंदी अकादमी का साहित्य सम्मान और मैथिलीशरण गुप्त सम्मान मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें रघुवीर सहाय सम्मान एवं शिखर सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं। वे फिनलैंड सरकार से नाइट ऑफ दि ऑर्डर ऑफ दि व्हाइट रोज़ सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं।

इनक निधन हुआ सन् 2018 में हुआ।


एक कम/सत्य : विष्णु खरे


पाठ के हल प्रश्नोत्तर…

प्रश्न 1

कवि ने लोगों के आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होने के लिए किन-किन तरीकों की ओर संकेत किया है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर :

कवि के अनुसार आत्मनिर्भर मालामाल और गतिशील होने के लिए लोगों ने विभिन्न तरह के गलत और बेईमानी वाले तरीके अपनाएं हैं। लोगों ने जल्दी मालामाल होने के लिए और किसी भी तरह धन कमाने के लिए बेईमानी का रास्ता अपना लिया है। लोग अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए किसी का भी गला काटने से नहीं चूकते। वह किसी का भी नुकसान करने से नहीं हिचकते।

ऐसे बेईमान लोग देश को खोखला कर रहे हैं और अपनी जेबें भर रहे हैं। यह लोग देश में तरह-तरह के भ्रष्टाचार करके जनता का पैसा गबन करके विदेशी बैंकों में डाल कर जमा कर देते हैं। इन लोगों को बेईमानी करने में जरा भी संकोच नहीं होता। इसी कारण ये लोग मालामाल बने हुए हैं और दिखाने के लिए आत्मनिर्भर और गतिशील बने हुए हैं।
कवि ने मालामाल, आत्मनिर्भर और गतिशील होने के इन्हीं बेईमानी वाले तरीकों की ओर संकेत किया है।


प्रश्न 2

हाथ फैलाने वाले व्यक्ति को कवि ने ईमानदार क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

हाथ फैलाने वाले व्यक्ति को कवि ने ईमानदार इसलिए कहा है क्योंकि हाथ फैलाने वाले व्यक्ति भ्रष्टाचार नहीं करता। यदि वह भी भ्रष्टाचार कर रहा होता बेईमानी का रास्ता अपना लिया होता तो उसे किसी के आगे हाथ नहीं फैलनने पड़ते। ईमानदारी से चलने के कारण ही उसकी दशा ऐसी हो जाती है कि उसे दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़ते हैं।

उसका परिवार और उसकी आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है और उसे दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं। भ्रष्टाचार और बेईमानी द्वारा दुनिया भर की सुख सुविधा जुटाना आसान कार्य है।

हाथ फैलाने वाला व्यक्ति यदि ऐसा करता तो वह भी ऐशो आराम की जिंदगी बिता रहा होता और उसे किसी के सामने हाथ नहीं बनाने पड़ते लेकिन जो व्यक्ति गरीब स्वाभिमानी और ईमानदार होता है, वह भ्रष्टाचार व बेईमानी का रास्ता अपनाने की जगह गरीबी का जीवन जीना तथा दूसरों के आगे हाथ फैलाना उचित समझता है। इसीलिए कवि ने हाथ फैलाने वाले व्यक्ति को ईमानदार कहा है, क्योंकि हाथ फैलाना उसकी ईमानदारी का प्रमाण है।


प्रश्न 3

1947 से लोग अनेक तरीकों से मालामाल हुए किंतु विमुद्रीकरण होने से उन स्थितियों में बदलाव आया या नहीं?

उत्तर :

यह बात सही है कि 1947 के बाद अनेक तरीकों से लोग मालामाल हुए, जिनमें अधिकतर तरीके बेईमानी और भ्रष्टाचार से युक्त तरीके ही थे। कुछ लोग अपनी मेहनत से भी मालामाल हुए लेकिन अधिकतर लोग गलत रास्तों को अपनाकर ही मालामाल हुए। इससे धन का संतुलन बिगड़ता रहा।

विमुद्रीकरण होने से कोई विशेष बदलाव नहीं आया है। आज भी धन का संतुलन वैसा ही है। यानि अमीर लोग और अधिक अमीर होते जा रहे हैं। गरीब लोग और गरीब होते जा रहे हैं।

विमुद्रीकरण से अमीर और गरीब दोनों लोगों को परेशानी हुई लेकिन अमीर और बेईमान लोगों को कम परेशानी हुई, क्योंकि उनके पास अपार धन था। इसी कारण वे जल्दी ही इस परेशानी से निकल आये। लेकिन गरीब लोग जिनकी जमा पूंजी बैंक में जमा थी, वह बुरी तरह प्रभावित हुए। उन्हें अधिक परेशानी हुई। इस कारण उसका पूरा जीवन ही प्रभावित हो गया।

विमुद्रीकरण करने के पीछे सरकार का उद्देश्य अच्छा था लेकिन उसका क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं किया गया और जल्दी बाजी में लिया गया निर्णय से उतना लाभ नहीं मिला पाया और अपने असली उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पाया। इसलिए विमुद्रीकरण से स्थितियों में कोई विशेष बदलाव नहीं आया है।


प्रश्न 4

‘मैं तुम्हारा विरोधी, प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं’ से कवि का क्या अभिप्राय है?

उत्तर :

‘मैं तुम्हारा विरोधी, प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं’ इन पंक्तियों का आशय यह है कि कवि इन पंक्ति के माध्यम से उन लोगों को संबोधित कर रहा है, जो लोग मालामाल बनने के लिए भ्रष्टाचार और बेईमानी के रास्ते पर चल रहे हैं। कवि ऐसे रास्ते पर नहीं चल रहा, इसलिए वह भ्रष्टाचार और बेईमानी में लिप्त लोगों को यह कहना चाहता है कि तुम लोगों को मुझसे डरने की कोई जरूरत नहीं।

मैं तुम्हारा विरोधी, प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं हूँ, क्योंकि मेरा और तुम्हारा रास्ता अलग-अलग है। भ्रष्टाचार और बेईमानी तथा स्वार्थपरता की दौड़ में कवि उन लोगों के साथ नहीं है, यह बात कवि उन लोगों को बताना चाहता है।

कवि कहता है कि वह उन लोगों के विरुद्ध आवाज नहीं उठा पा रहा इसलिए वह उन लोगों का विरोधी भी नहीं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह उन लोगों के हिस्से में अपनी हिस्सेदारी चाहता है। वह उन लोगों का हिस्सेदार भी नहीं बनना चाहता और ना ही वो उन लोगों से किसी तरह की ओर होड़ करना चाहता है।


प्रश्न 5

भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(क) 1947 के बाद से इतने लोगों को इतने तरीकों से आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होते देखा है।
(ख) मानता हुआ कि हाँ मैं लाचार हूँ, कंगाल या कोढ़ी या मैं भला-चंगा हूँ और कामचोर और एक मामूली धोखेबाज
(ग) तुम्हारे सामने बिल्कुल नंगा, निर्लज्ज और निराकांक्षी, मैने हटा लिया अपने आपको हर होड़ से

उत्तर :

भाव सौंदर्य इस प्रकार होगा :

(क) 1947 के बाद से
इतने लोगों को इतने तरीकों से
आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होते देखा है।

भाव सौंदर्य : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि 1947 में भारत की आजादी के बाद से भारत में अनेक परिवर्तन हुए। स्वतंत्रता सेनानियों ने जैसी आजादी सोची थी, उसके बाद की परिस्थितियां वैसे नहीं रही। लोगों ने नैतिकता और ईमानदारी का साथ छोड़ कर बेईमानी तथा अनैतिकता का रास्ता अपना लिया।
लोगों ने भ्रष्टाचार और बेईमानी वाले तरीकों से बड़ी मात्रा में धन कमाया लोग मालामाल होते गए। हालाँकि उन्होंने स्वयं को इस तरह दर्शाया कि जैसे उन्होंने निरंतर परिश्रम करके धन कमाया है और इसी कारण वह धनवान हुए हैं, लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है। कवि के अनुसार  मेहनत परिश्रम तो सभी करते हैं तो सभी मालामाल क्यों नहीं हुए। इन लोगों के मालामाल होने का कारण उनकी बेईमानी और भ्रष्टाचार है।

(ख) मानता हुआ कि हाँ मैं लाचार हूँ,
कंगाल या कोढ़ी या मैं भला-चंगा हूँ
और कामचोर
और एक मामूली धोखेबाज

भाव सौंदर्य : इन पंक्तियों का भाव यह है कि तवि जब भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को देखता है तो वह उनका विरोध करने का साहस नहीं कर पाता। वह स्वयं को लाचार मानता है। कवि मन ही मन सोचता है कि यदि शायद वह थोड़ा बहुत प्रयास करता, इन भ्रष्टाचारी बेईमान लोगों का विरोध करता तो शायद कुछ परिवर्तन हो सकता था। लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया इसी कारण कवि स्वयं को कामचोर भी मानता है, क्योंकि उसने कुछ करने का प्रयास नहीं किया।
बेईमान लोगों को बेईमानी करते देख तथा ईमानदार लोगों की दुर्दशा को देख कर भी अनदेखा करता रहा इस तरह वह स्वयं को ही धोखा देता रहा। कवि ने अपने सामने बेईमान लोगों को ऐशो-आराम की जिंदगी जीते तथा ईमानदार लोगों को हाथ फैलाते देखा है और वह सारी स्थितियों को देख कर भी चुप है, इसी कारण कवि ने इस पंक्ति के माध्यम से स्वयं को तरह-तरह की उपमायें दे रखी हैं।

(ग) तुम्हारे सामने बिल्कुल नंगा, निर्लज्ज और निराकांक्षी,
मैने हटा लिया अपने आपको हर होड़ से

भाव सौंदर्य : इस पंक्ति का भाव यह है कि कवि कहता है कि बेईमान लोगों के सामने उसका कोई भी व्यक्तित्व नहीं क्योंकि वह बेईमान लोगों के सामने स्वयं को नंगा, बेशर्म और इच्छा एवं कामना रहित मानता है। वह भी बेईमान लोगों से किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा भी नहीं करना चाहता क्योंकि वह इन लोगों के जैसा नहीं होना चाहता। वह इन बेईमान लोगों का न तो विरोधी है और ना ही इन लोगों का हिस्सेदारी करना चाहता है।


प्रश्न 6

शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(क) कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है,
पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए तो जान लेता हूँ,
मेरे सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है।

(ख) मैं तुम्हारा विरोधी, प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं।
मुझे कुछ देकर या ना देकर भी तुम कम से कम एक आदमी से तो निश्चिंत रह सकते हो।

उत्तर :

शिल्प सौंदर्य इस प्रकार होगा :

(क) कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है,
पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए तो जान लेता हूँ,
मेरे सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है।

शिल्प सौंदर्य : कविता में मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है। कविता की भाषा भी एकदम सरल व सहज है जो कि आम जन भाषा है। कविता की भाषा में लाक्षणिकता का गुण निहित है। कवि पंक्ति में ‘हाथ फैलाना’ जेसे मुहावरे का भी प्रयोग सुंदर तरीके से किया है। ‘हाथ फैलाने’ को कवि ईमानदार व्यक्ति की पहचान का व्यंजनार्थ बनाया है। कवि का कहने का भाव यह है कि हाथ फैलाने वाला व्यक्ति बेईमान नहीं होता। पच्चीस पैसे में अनुप्रास अलंकार प्रकट हो रहा है।

(ख) मैं तुम्हारा विरोधी, प्रतिद्वंदी या हिस्सेदार नहीं।
मुझे कुछ देकर या ना देकर भी तुम कम से कम एक आदमी से तो निश्चिंत रह सकते हो।

शिल्प सौंदर्य : कविता में मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है। कविता की भाषा भी एकदम सरल व सहज है जो कि आम जन भाषा है। इस पंक्ति में इन पंक्तियों में प्रतीकात्मकता का गुण विद्यमान है। कवि ने विरोधी, प्रतिद्वंदी तथा हिस्सेदार के रूप में व्यंजनार्थ प्रयोग किया है। कवि विरोधी कहकर यह स्पष्ट करना चाहता है कि वह बेईमान लोगों के विरुद्ध आवाज नहीं उठा सका। प्रतिद्वंदी कहकर यह स्पष्ट करना चाहता है कि वह बेईमान लोगों से होड़ भी नहीं करना चाहता। हिस्सेदार कहकर ये स्पष्ट करना चाहता है कि वह इन लोगों से किसी भी तरह का हिस्सा भी नहीं चाहता। कवि ऐसे ही बेईमान, भ्रष्टाचारी लोगों के प्रति तटस्थता का भाव रखता है।


(सत्य)

प्रश्न 1

सत्य क्या पुकारने से मिल सकता है। युधिष्ठिर विदुर को क्यों पुकार रहे हैं? महाभारत के प्रसंग से सत्य के अर्थ खोलें।

उत्तर :

जी नहीं, सत्य पुकारने से नहीं मिलता। सत्य पुकारने से नही बल्कि सत्य रूपी आचरण करने से मिलता है। सत्य सच्चाई के मार्ग पर चलने से मिलता है। सत्य की प्राप्ति सत्य को जाने के लिये दृढ़ निश्चयी होने से तथा सत्य का सामना करने से मिलता है। सत्य को पाने के लिए कठिन संघर्ष करने पड़ते हैं। दुर्गम रास्तों पर चलना पड़ता है। सत्य की राह कांटों भरी होती है। सत्य की राह आसान नहीं होती कांटो भरी होती है।

युधिष्ठिर विदुर को सत्य को समझने के लिए पुकार रहे हैं। रिश्ते ने पूरे जीवन सत्य का पालन किया और सत्य को ही अपना धर्म माना। इसी कारण वह धर्मराज कहे जाते हैं। धर्मराज वह शुरू से नहीं थे। धर्मराज कहलाने से पहले वह युधिष्ठिर ने सत्य को जानने के लिए विदुर का सहारा लिया था और विदुर ने ही उन्हें सत्य का मार्ग दिखलाया था। युधिष्ठिर को जब यह ज्ञान हुआ कि विदुर ही उन्हें सत्य के मार्ग से परिचित करा सकते हैं तो वह विदुर के पीछे हो लिए और उन्हें इसीलिए पुकार रहे हैं।

विदुर उनसे बचकर जाना चाहते हैं। विदुर को पता था कि सत्य का मार्ग अत्यंत कठिन है, हर कोई कोई इस पर नही चल सकता। इसीलिए विदुर युधिष्ठिर से बचना चाह रहे थे। लेकिन जब युधिष्ठिर उनसे सत्य का ज्ञान प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चयी हो गए तो फिर युधिष्ठिर को सत्य का ज्ञान देना पड़ा और सत्य को जानकर युधिष्ठिर धर्मराज बन गए।


प्रश्न 2

सत्य का दिखना और ओझल होना से कवि का क्या तात्पर्य है?

उत्तर :

हर व्यक्ति के अंदर सत्य होता है, लेकिन सत्य प्रबल होकर तब ही दिखता है जब सत्य के मार्ग पर दृढ़ निश्चय कर चला जाता है। यदि परिस्थितियां सत्य के विरोध में आ जाएं और सत्य को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाएं, यदि झूठ सत्य पर भारी पड़ जाए तो सत्य शीघ्रता से ओझल हो जाता है।

सत्य हर समय सामने दिखे यह आवश्यक नहीं क्योंकि वह स्थिर नहीं रह पाता। सत्य को स्थिर रखने के लिए, उसे कायम रखने के लिए सत्य का पालन करने वाले को दृढ़ निश्चयी होना पड़ता है। जब सत्य पालन करने वाला दृढ़ निश्चय होकर अपनी संकल्प शक्ति से सत्य को संभाल कर रखता है तो सत्य हमेशा दिख सकता है। नहीं तो सत्य को यदि तोड़ा मरोड़ा जाएगा, यदि पर झूठ हावी हो जाएगा तो सत्य उज्जवल हो जाता है। इसीलिए कवि के अनुसार सत्य के पालन करने वालों के आचरण के अनुसार से सत्य कभी दिखता है तो कभी ओझल हो जाता है।

महाभारत के संदर्भ में कहा जाए तो युधिष्ठिर में पूरे जीवन भर सत्य का पालन किया इसलिए उनके सामने से सत्य कभी भी ओझल नहीं हुआ। सब लोग सत्य का हमेशा पालन नहीं कर पाते इसीलिए उनके सामने से सत्य ओझल हो जाता है।


प्रश्न 3

सत्य और संकल्प के अंतर्संबंध पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर :

सत्य और संकल्प में बेहद गहरा संबंध है। सत्य और संकल्प दोनों एक दूसरे पर टिके हैं। सत्य की राह पर तभी चला जा सकता है, जब सत्य का पालन करने वाले के अंदर संकल्प होगा। यदि सत्य पालन करने वाले में संकल्प शक्ति की कमी है, वह दृढ़ निश्चय नहीं है तो वह सत्य के मार्ग पर नहीं चल सकता।

सत्य का मार्ग बेहद कठिन और कांटो भरा है। इस मार्ग पर चलने के लिए अनेक संघर्षों, विरोधों और कष्टों का सामना करना पड़ सकता है, फिर भी यदि सत्य का पालन करने वाला व्यक्ति बिना विचलित होते हुए अपनी संकल्प शक्ति के सारे सत्य के मार्ग पर चलता रहता है तो वह सत्य भी उसके साथ चलता है और सत्य फलता फूलता है। लेकिन जहाँ व्यक्ति की संकल्प कमजोर पड़ी तो वहीं सत्य भी तुरंत दम तोड़ देगा।

इसीलिए सत्य और संकल्प में बेहद गहरा संबंध है। जैसे जल और मछली के बीच का संबंध है। जल के बिना मछली तड़पती हुई दम तोड़ देती है, उसी तरह संकल्प के बिना सत्य भी दम तोड़ देगा।


प्रश्न 4

युधिष्ठिर’ जैसा संकल्प से क्या अभिप्राय है?

उत्तर :

युधिष्ठिर जैसा संकल्प से यह अभिप्राय है कि यदि सत्य का पालन करना है, तो युधिष्ठिर जैसा संकल्प चाहिए। युधिष्ठिर संकल्प के पर्याय बन गए, क्योंकि उन्होंने अपने पूरे जीवन पर्यंत सत्य का पालन किया। उन्होंने सत्य का साथ कभी नहीं छोड़ा और दृढ़ निश्चयी होकर अपनी संकल्प शक्ति के सहारे पूरे जीवन पर्यंत सत्य का पालन किया। उनके मार्ग में अनेक कठिनाइयां आईं, उन्हे सत्य के मार्ग से विमुख करने के प्रयास भी किये गये लेकिन वो अपनी संकल्पशक्ति से सहारे सत्य पर टिक रहे। इसलिए उनकी ऐसी संकल्प शक्ति के कारण ही संकल्प युधिष्ठिर का पर्याय बन गया।

‘युधिष्ठिर जैसा संकल्प’ सत्य के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति के लिए एक प्रेरणादायक सूत्र वाक्य है। इसीलिए यदि सत्य का पालन करना है, तो युधिष्ठिर की तरह संकल्प शक्ति को अपनाना होगा।


प्रश्न 5

कविता में बार-बार प्रयुक्त ‘हम’ कौन हैं और उसकी उसकी चिंता क्या है?

उत्तर :

कविता में बार बार प्रयुक्त हम शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया गया है, जिन्हें सत्य की खोज है जो सत्य की खोज में इधर-उधर भटक रहे हैं, लेकिन वह ना तो सत्य को पहचान पा रहे हैं और ना ही सत्य को समझ पा रहे हैं इसलिये वह सत्य को प्राप्त नही कर पा रहे हैं।

उनकी मुख्य समस्या यह है कि वह सत्य के स्थिर रूप को समझ नहीं पा रहे। किसी के लिए कुछ सत्य है तो किसी के लिए कुछ और सत्य है। सत्य की सटीक पहचान करने की समझ उनके अंदर नहीं आ पाई है। अपनी इसी समस्या के कारण वह सत्य की पहचान के लिए प्रयास तो कर रहे हैं और इधर उधर भटक भी रहे हैं, लेकिन उन्हें ना तो सत्य की पहचान हो पा रही है और ना ही उन्हें सत्य मिल पा रहा है। उन्हें हर बार निराश ही होना पड़ रहा है। कविता में सत्य ऐसे लोगों के लिए ही प्रयुक्त किया गया है।


प्रश्न 6

सत्य की राह पर चल, अगर अपना भला चाहता है तो सच्चाई को पकड़’, इन पंक्तियों के प्रकाश में कविता का मर्म खोलिए।

उत्तर :

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि के कहने का भाव यह है कि आज चारों तरफ समाज में जैसा वातावरण है। वह अधर्म युक्त और अनैतिक युक्त वातावरण है। लोग सत्य से विमुख होते जा रहे हैं और झूठ के जाल में निरंतर उलझते जा रहे हैं। कवि झूठ की सत्य पर विजय को देखकर बेहद परेशान है।

चारों तरफ झूठ का साम्राज्य फैला हुआ है। सत्य निरंतर दम तोड़ता जा रहा है। कवि के अनुसार यह स्थिति अच्छी नहीं है। यदि मानवता को बचाना है तो सत्य को भी बचाना होगा। कवि को सत्य के मार्ग पर चलना होगा, नहीं तो झूठ का यह साम्राज्य मानवता को पूरी तरह नष्ट कर देगा। सत्य ही मानवता को बचा सकता है। वह ही मानवता और भाईचारा उत्पन्न कर सकता है। सत्य के कारण ही लोगों में सद्गुण विकसित होंगे। धर्म और नैतिकता का भाव उत्पन्न होगा। इसीलिए कवि सभी लोगों से समय रहते चेत जाने के लिए आगाह कर रहा है और वह कहना चाहता है कि जल्दी से जल्दी सच्चाई की राह को पकड़ लेना चाहिए, तभी मानवता बच सकती है।


(योग्यता विस्तार)

प्रश्न 1

सत्य को अपने अनुभव के आधार पर परिभाषित कीजिए।

उत्तर :

अपने अनुभव के आधार पर कहें तो सत्य हमेशा आत्मबल प्रदान करने का साधन बना है। सत्य का पालन करने पर जो आत्म सुख प्राप्त हुआ है, जिस तरह की अनुभूति हुई है, वह झूठ बोलने पर कभी नहीं हो सकती।

अपने जीवन के कई व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर पाया है कि सत्य बोलने के बाद हमेशा मनोबल ऊंचा हुआ है और एक तरह की आत्मसंतुष्टि प्राप्त हुई है कि हमने किसी को धोखा नही दिया, किसी को झूठ नहीं बोला जो कुछ यथार्थ था, वही बताया। इसलिए सत्य का पालन करने का आत्मसुख अलग ही होता है। सत्य बोलने का सुख दीर्घकालीन होता है, जो लंबे समय तक कायम रहता है। झूठ बोलने पर थोड़े समय के लिए लाभ हो जाता हो लेकिन आगे उसका दुष्परिणाम भी देखने को मिलता है। सत्य के साथ ऐसा नहीं होता। भले ही सत्य उस समय बोलने वाले को या सुनने वाले को कष्टकारी प्रतीत होता हो, लेकिन भविष्य में उसका अच्छा फल ही मिलता है।


प्रश्न 2

आजादी के बाद बदलते परिवेश का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करने वाली कविताओं का संकलन कीजिए तथा एक विद्यालय पत्रिका तैयार कीजिए।

उत्तर :

विद्यार्थियों को सुझाव है कि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों से उन कविताओं का संकलन करें जो आजादी के बाद कवियों ने लिखी हैं। इन कविताओं से आजादी के बदलते परिवेश का चित्रण मिल सकेगा। ऐसी कविताओं का संकलन करके अपनी विद्यालय पत्रिका तैयार कर सकते हैं।


प्रश्न 3

ईमानदारी और सत्य की राह आत्मसुख प्रदान करती है। इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।

उत्तर :

बिल्कुल सही है। ईमानदारी और सत्य की राह आत्मसुख प्रदान करती है। जो व्यक्ति ईमानदार होता है, वह कभी भी आत्मग्लानि से ग्रस्त नहीं होता। उसके मन के अंदर कोई भी भय नहीं होता। इसीलिए वह आत्मसम्मान भरा जीवन व्यतीत करता है। उसका आत्मसम्मान ही उसे आत्मसुख प्रदान करता है। जो व्यक्ति सत्य की राह पर चलता है। वो कभी किसी का दिल नहीं दुखा सकता। क्योंकि जो व्यक्ति सत्य बोलता है, स्पष्टवादी होता है, जीवन के प्रति स्पष्ट दृष्टिकोण रखता है। इस कारण वह हमेशा अपने जीवन के प्रति आशावन रहता है। उसे किसी के सामने शर्मिंदा नहीं होता क्योंकि उसने कभी झूठ नहीं बोला जो उसका झूठ पकड़ा जाए। उसने सदैव सत्य बोला है तो उसे किसी बात का भय नही होता। वह सबके सामने सम्मान से जी सकता है। उसके यह दोनों गुण उसे हमेशा आप सुख प्रदान करते हैं।


प्रश्न 4

गांधीजी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग की कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर :

महात्मा गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ गांधीजी ने अपने जीवन की प्रमुख घटनाओं का वर्णन करते हुए सत्य पर आधारित उनके प्रयोगों के बारे में बताया है। गांधीजी ने यह किताब मूलतः गुजराती भाषा में लिखी थी और यह विश्व की अनेक भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है। ये पुस्तक विश्व की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक है। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने ईश्वर को समझने और समझाने का प्रयास किया है।


प्रश्न 5

लगे रहो मुन्ना भाई फिल्म पर चर्चा कीजिए।

उत्तर :

‘लगे रहो मुन्ना भाई’ एक हिंदी फिल्म है। इस फिल्म का नायक एक गुंडा है। इस फिल्म में गांधीजी भी एक सूत्रधार की भूमिका में है, जो नायक के सामने उसकी अवचेतन स्मृति जब तब आकर उसका मार्गदर्शन करते हैं। इससे नायक का जीवन बदल जाता है।


प्रश्न 6

कविता में आए महाभारत के कथा प्रसंगों को जानिए।

उत्तर :

कविता में पाँच पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर और कौरवों से महामंत्री विदुर के बीच के घटनाक्रम को बताया गया है। विदुर रिश्ते में पांडवों के चाचा भी लगते थे। युधिष्ठिर सत्य की खोज में निकले है और विदुर सत्य के ज्ञानी है। इसलिए युधिष्ठिर विदुर को ही ढूंढ रहे हैं।


एक कम/सत्य : विष्णु खरे (कक्षा-12 पाठ-5 हिंदी अंतरा 2)

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